अल्मोड़ा मित्रों कुछ ही लोग होते हैं जिन्हें किसी की विरह वेदना का आभास होता है यूं तो भारतवर्ष में कवियों और लेखकों की कोई कमी नहीं रही है यह देश अनेकता में एकता को समाए हुए अनेक धर्म और अनेक प्रकार के संप्रदायों का देश है इस देश में अनेक विविधताओं एकता के कारण यह देश विश्व का सिरमौर है और इसे विश्व गुरु के रूप में भी जाना जाता है राजकीय हाई स्कूल चौरा कॉलेज के प्रधानाचार्य जगदीश चंद्र पाठक भी सदैव लेखन कार्य में लगे रहते हैं इनकी लेखों में अनेक प्रकार के संग्रह है इनकी कविताएं भी काफी हृदय स्पर्शी होती हैं इन्हीं कविताओं में हाल ही में धूप को लेकर इन्होंने एक कविता के माध्यम से अपनी पीड़ा निर्बल असहाय वर्ग के प्रति व्यक्त की है जिसे पढ़ने के बाद हर कोई भावविभोर हो जाता है आइए हम आपको उनकी एक कृति से अवगत कराते हैं।
यकीन मानिए कुछ लोग अभी भी स्वेटर पहने हैं सुबह धूप अच्छी लग रही है। हम साल भर पँखा नहीं चलाते हैं, मुझे कभी फ्रिज की कमी महसूस नहीं हुई… यहाँ हवा ठंडी है ।
परन्तु सोचता हूँ क्या गुजर रही होगी उन मजदूरों पर जो एसी,कूलर,पँखों से कोसों दूर तपती दोपहर में पेट के लिये तन को झुलसा रहे होंगे।
गोमती तट का लखनऊ, गंगा,यमुना का इलाहाबाद, यमुना तट की दिल्ली या फिर रेतीला राजस्थान ।पूरा उत्तर भारत उबल रहा है, सड़कें पिघल रही हैं।
उच्च वर्ग तापमान सैट कर आलीशान ऑफिस या घरों के अंदर दुबके हैं ।
एक मज़दूर ही है जो इस रिकॉर्ड तोड़ गर्मी का मुक़ाबला
खुली सड़क पर कर रहा है, जिसके दम पर ये देश दुनियां के कारोबार चल रहे हैं।बात यहीं ख़त्म नहीं होती वो तो बर्षा ,हिमशीत का मुक़ाबला भी इसी प्रकार करता है।
अत्यंत खेद की बात है रिक्शे वाले , बोझ ढोने वाले, चिलचिलाती धूप में सब्ज़ी बेचने वाले से बहस कर दस रुपये घटवा कर अमीर बनने का स्वप्न देखने वालो उसके पसीने की आह तुम्हें कभी अमीर नहीं बनने देगी ..
कल मज़दूर दिवस मनाया जायेगा लोग जैसा कि रिवाज है, हैप्पी वेलेंटाइन डे की तर्ज़ पर हैप्पी Labour day की शुभकामनाएं देंगे आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने अपने एक निबंध में लिखा था “अरे मोटे लोगो तुम ज़रा पतले हो जाते न जाने कितनी ठठरिओं पर मांस चढ़ जाता” अगर पसीना बहाने वाले को दो पैसा अधिक भी चला गया तो कोई कंगाल नहीं होगा, उसकी आत्मा की दुआ से भला ही होगा….…….जगदीश चंद्र पाठक।

