अल्मोड़ा, 03 फरवरी 2023 – उप परियोजना निदेशक ग्राम्या डा0 एस0के0 उपाध्याय ने बताया कि उत्तराखंड विकेन्द्रीकृत जलागम विकास परियोजना (ग्राम्या-2) के क्षेत्रांतर्गत धौलादेवी विकासखण्ड के 9 सूक्ष्म जलागम क्षेत्रों में 87 ग्राम पंचायतों में संचालित थी। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य भी पूर्णतया पंचायती राज व्यवस्था के तहत ग्रामीण सहभागिता आधारित ऊध्र्वगामी पद्धति से जलागम विकास योजनाओं का नियोजन, क्रियान्वयन, संवितरण तथा अनुश्रवण करते हुए प्राकृतिक संसाधनों की कार्यक्षमता तथा बारानी कृषि की उत्पादकता में अभिवृद्धि करना था।
पुनर्भरण क्षेत्रों (recharge zones) की मैपिंग तथा उपचार के वैज्ञानिक विधि द्वारा नियोजन हेतु स्प्रिंगशैड एप्रोच का पालन किया गया। परियोंजना अंतर्गत ग्रामीण समाज के सभी हितभागियों को प्रेरित कर उनकी सहृदय सहभागिता सुनिश्चित करने में जलागम विभाग के सभी पदाधिकारियों का अहम रोल रहा। वन पंचायत द्वारा चारा घास का रोपण हो या घरबाड़ी में फलपौध का रोपण, वन अथवा जलोनी काष्ठ प्रजातियों का रोपण किया गया।
परियोजना क्षेत्रों में मृदा तथा नमी संरक्षण के लिए 1111 नग वानस्पितिक चैकडैम, 940.25 घ0मी0 ड्राई स्टोन चैकडैम, 1,17,211.07 घ0मी0 .तार-जाल वाले चैकडैमों का निर्माण हुआ। वहीं परियोजना के हितभागियों द्वारा वर्षाजल तथ आद्रता के संरक्षण के लिए1,47,001 कन्टूर खन्तियों का खुदान करने के साथ-साथ 112 नग (100 से 200 घ0मी0 क्षमता) के कच्चे तालाबों का खुदान किया गया जिसके कारण लम्बी समयावधि तक जल उपलब्धता बनी (46 से 183 दिनांे तक) और जल स्त्रोतों का उत्सर्जन भी बढ़ा (नौलों में 32 से 47 प्रतिशत, धारों में 27 से 43 प्रतिशत तक) जिसके चलते महिलाओं पर अतिरिक्त बोझ कम हुआ है (जल, चारा, लकड़ी लाने पर होने वाले समय खर्चे में न्यूनतम 3 घंटे की कमी आयी)। 5199 नग रेन रूफ वाॅटर हार्वेस्टिंग टैंकों का निर्माण हुआ, 363 सामूहिक ंिसंचाई टैंकों (15000 ली0 क्षमता) का निर्माण होने से 217.8 है0 अतिरिक्त सिंचाई क्षमता का विकास हुआ, 17 जियो मैम्ब्रेन टैंकों (15000 से 20000 ली0 क्षमता), 431 एल0डी0पी0ई0 टैंकों (12000 ली0 क्षमता) का निर्माण परियोजना अंतर्गत किया गया जिनसे जल संचय क्षमता में वृद्धि हुई। सौर ऊर्जा संचालित सबमर्सिबल वाटर लिफ़्ट पम्प (3.0 से 5.0 अ0श0 क्षमता) के उपयोग से 100 से 200 मी0 ऊपर किसानों के निंिज क्षेत्रों में स्थित जियो मैम्ब्रेन टैंकों या सामूहिक सिंचाई टैंकों तक जल को पहुँचाया गया जिससे अतिरिक्त सिंचाई क्षमता का सृजन हुआ और खेती के क्षेत्रफल में वृद्धि संभव हो सकी और परियोजना क्षेत्र में कृषि की उत्पादन क्षमता व क्षेत्रफल में आशातीत वृद्धि प्राप्त हो सकी। किसानों ने पारंपरिक विधि से खेती करने के साथ-साथ संरक्षित खेती, सब्जी उत्पादन, पुष्प उत्पादन, यूरोपियन वैजिटेबल उत्पादन तथा सगन्ध पुष्पों की खेती से अतिरिक्त आय अर्जित करना भी आरंभ किया। परियोजना क्षेत्र के किसान मल्च तकनीक तथा पाॅलीहाऊस में खेती की तकनीक से भी लाभान्वित हुए और जल के समुचित एकीकृत प्रबंधन द्वारा अपनी आजीविका अर्जन में बेहतर सफलता प्राप्त कर सके।
परियोजना क्षेत्र में जल उपयोग क्षमता में लगभग 45% से 80-85% की वृद्धि (पारंपरिक विधि की आपेक्षा) प्राप्त हो सकी और किसानांे के लाभ में लगभग 162 से 283% की वृद्धि हासिल हुई (आरंभिक 5.20 लाख से रू 14.71 लाख तक)। चयनित ग्राम पंचायतों में सौर ऊर्जा के सिंचाई में उपयोग द्वारा भी (डीजल पम्प की अपेक्षा) लगभग रू0 2.58 लाख की वार्षिक बचत संभव हो सकी तथा वर्षिक कार्बन उत्सर्जन में भी लगभग 6174.4 किग्रा0 की कमी दर्ज हो सकी।
वर्मी मदर इकाई के निर्माण तथा जैव एजेन्टों द्वारा संवर्धित वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन आरंभ हुआ। वहीं सिराही नस्ल के बकरा साॅड तथा बकरियाॅ इच्छुक पशुपालक समूहों को प्रेरित एवं प्रशिक्षित करने के उपरान्त उपलब्ध कराई गईं जिससे न सिर्फ स्थानीय नस्लों में सुधार हुआ बल्कि उच्च गुणवŸाा वाली बकरी प्रजातियों को परियोजना क्षेत्र में उत्पादित कर उच्च आय अर्जित करने का स्त्रोत भी बना।
परियोजना क्षेत्र के कास्तकारों को प्रमाणित एवं आधारीय बीजों के उत्पादन के साथ जोड़ा गया जिससे न सिर्फ उनकी आजीविका में उन्नयन हुआ वहीं परियोजना क्षेत्र में उच्च गुणवŸाा वाले बीज स्त्रोत भी सृजित हुए और कृषक फैडरेशन का गठन हुआ जिससे किसानों की आय में 2.5 से 4 गुने की वृद्धि दर्ज हो सकी।
इन सभी परियोजना कार्यांे के अनेक परोक्ष लाभ भी स्थानीय हितभागियों को प्राप्त हुए हैं जैसे वानस्पतिक आवरण में वृद्धि हुई, जल संभरण संरचनाओं का विकास हुआ, भू-जल में वृद्धि, मृदा स्तर व नमी में वृद्धि हुई, मृदा का क्षरण कम हुआ जिनसे सकल पर्यावरणीय लाभ हुए। जल प्रबंधन के प्रति स्थानीय हितभागियों की जागरूकता के स्तर में भी वृद्धि हुई जो सफल सामाजिक उत्प्रेरण का परिणाम कही जा सकती है। महिलाओं की भूमिका सुनिश्चित होने के कारण उनका आत्मविश्वास तथा निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि हुई है।