विवेक रंजन श्रीवास्तव – विभूति फीचर्स
अब तो जाने कितनी ई पत्रिकाएं निकल रही हैं, पर पुरानी हार्ड कापी व्यंग्य पत्रिकाओं का तथा अन्य पत्रिकाओं में व्यंग्य स्तंभों का व्यंग्य के विकास में योगदान निर्विवाद है।
मेरे घर में मतवाला के कुछ अंक थे, जो पिछली सदी में 1923 में कोलकाता से छपी प्रमुख व्यंग्य पत्रिका थी । जिसके संपादक मंडल के सभी चार प्रमुख सदस्य युवा लेखक थे जो बाद में युग प्रवर्तक लेखक बने। इनमें एक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला थे जो बीसवीं सदी के सबसे बड़े कवि माने गए, इनमे दूसरे शिवपूजन सहाय थे जो हिंदी के गद्य निर्माता और साहित्यकार निर्माता माने गए,इनमें तीसरे पांडेय बेचन शर्मा जैसे अद्भुत लेखक भी थे यद्यपि वे बाद में जुड़े और सबसे उम्रदराज लेखक पत्रकार नवजादिक लाल श्रीवास्तव थे जो अल्पायु में चल बसे। इस पत्रिका के मालिक महादेव प्रसाद सेठ थे जो खुद भी एक लेखक थे। आठ पन्नों की यह साप्ताहिक समाचार पत्र नुमा पत्रिका बंगला की हास्य व्यंग्य पत्रिका अवतार की प्रेरणा से निकली थी।
1968 में हैदराबाद से शुरू हुआ, शुगूफ़ा मज़ेदार पत्रिका थी। इसका नाम मुहावरे शगूफे छोडऩा (कुछ नया और मजेदार कहना) से लिया गया है, इसकी स्थापना अकादमिक डॉ. सैयद मुस्तफा कमाल ने की थी। यह देश की (किसी भी भाषा में) कुछ पत्रिकाओं में से एक है जो पूरी तरह से हास्य को समर्पित है।
अट्टहास और व्यंग्य यात्रा तो सुस्थापित हैं ही, व्यंग्यम, जयपुर से गुपचुप या ऐसे ही किसी नाम से व्यंग्य पत्रिकाएं छपी। सुरेश कांत जी ने हेलो का एक अंक प्रायोगिक रूप से हाल ही में निकाला था।
पुरानी नियमित पत्रिकाओं की याद करूं तो मधुर मुस्कान, दीवाना धर्मयुग, कादंबिनी, सारिका, साप्ताहिक हिंदुस्तान,चंपक,लोटपोट, नंदन,माधुरी, मनोरमा, सरिता, मुक्ता सब में व्यंग्य, कार्टून के स्तंभ होते थे।
हमारे घर में इन पत्रिकाओं को पढऩे की होड़ लगा करती थी । तब टीवी नहीं केवल रेडियो था या बड़ी मोटी सेल वाला ट्रांजिस्टर भी आ गया था।
कस्बा उझानी के सुप्रसिद्ध कवि-लेखक टिल्लन वर्मा द्वारा रचित-प्रकाशित हास्य-व्यंग्य पत्रिका होली का हुड़दंग अपने जीवन के 54वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी है। इसे चमत्कार ही कहा जायेगा कि आज जब अनेक नामचीन पत्रिकाएँ बीच रास्ते में ही दम तोड़ गई हैं, तब टिल्लन जी की यह 54 वर्ष लम्बी रचनात्मक यात्रा पूरी तरह वनमैन-शो रहा।
प्राय: होली के मौके पर कई स्थानों से हास्य व्यंग्य पत्रिकायेें निकलती थी। निवास जिला मंडला से मनोज जैन ऐसा ही एक प्रयास करते हैं। प्रमुख लोगों को टाइटिल बांटने में इन पत्रिकाओं का स्थान अब सोशल मीडिया ने ले लिया है।
व्यंग्य विविधा, हास्यम व्यंग्यम, रंग चक्कलस, विदूषक, कार्टून वाच, नई गुदगुदी भी उल्लेखनीय पत्रिकाएं रहीं या हैं।
व्यंग्य विविधा इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण इन अर्थो में रही कि उसने व्यंग्य आलोचना और व्यंग्य पर वैचारिक विमर्श की शुरुआत की, जिसे व्यंग्य यात्रा ने और विस्तार दिया। अस्तु व्यंग्य पत्रिकाओं को हल्के फुल्के मारक तंज के लिए जाना जाता है।