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December 18, 2024

रॉयल्टी के मुद्दे पर गरमाती झारखंड की राजनीति

News Deskby News Desk
in उत्तराखंड, राजनीति
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रॉयल्टी के मुद्दे पर गरमाती झारखंड की राजनीति
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रॉयल्टी के मुद्दे पर गरमाती झारखंड की राजनीति

(कुमार कृष्णन -विभूति फीचर्स)

रॉयल्टी के मुद्दे पर झारखंड की राजनीति पूरी तरह से गरमा गई है। इस मामले को लेकर झारखंड मुक्ति मोर्चा के निशाने पर केंद्र सरकार और कोयला कंपनियां हैं। झारखंड विधानसभा चुनाव से ही रायल्टी का मुद्दा एक बड़ा मुद्दा रहा है । तब सवाल यह था कि केंद्र सरकार झारखंड का रॉयल्टी का 1.36 लाख करोड़ रुपये कब देगी। अब फिर यह मुद्दा गर्मा रहा है।

इसको लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा था। अब इसका जवाब केंद्र से मिल चुका है। केंद्र सरकार ने लोकसभा में स्पष्ट किया है कि झारखंड का रॉयल्टी का 1.36 लाख करोड़ रुपये केंद्र पर बकाया नहीं है। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा कि झारखंड के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा रहा है।

लोकसभा में निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने कोयला और खनिजों की रॉयल्टी से जुड़े इस मुद्दे को उठाते हुए सवाल किया था कि 1.36 लाख करोड़ रुपये झारखंड का केंद्र पर बकाया है। इस पर केंद्र सरकार ने जवाब दिया कि ऐसी कोई बकाया राशि नहीं है।

रॉयल्टी के मुद्दे पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आरंभ से ही केन्द्र पर दबाव बनाए हुए हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपनी सरकार की पहली कैबिनेट बैठक के बाद मीडिया से कहा था कि केंद्र पर राज्य का 1.36 लाख करोड़ रुपये का बकाया है, जिसे वसूलने के लिए कानूनी कार्रवाई की जाएगी । सोरेन ने यह भी कहा कि कोल इंडिया जैसी केंद्रीय कंपनियों से प्राप्त रायल्टी पर राज्य का अधिकार है और इसके न मिलने से झारखंड का विकास रुक रहा है।

चौथी बार झारखंड की गद्दी पर सत्तासीन होने के बाद से ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन केंद्र सरकार पर हमलावर हैं। उन्होंने चेतावनी दी है कि झारखंड सरकार कोयला की बकाया राशि वसूलने के लिए केंद्र सरकार के खिलाफ कानूनी कदम उठाएगी।

इससे पहले सोरेन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 2 नवंबर को झारखंड के बकाए की मांग की थी। उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया था कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से वह फिर से अनुरोध करते हैं कि झारखंड का 1.36 लाख करोड़ रुपये का बकाया चुकाया जाए, क्योंकि यह राज्य के लिए बेहद जरूरी है।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात की पुष्टि की है कि राज्य को खनन और रॉयल्टी बकाया वसूलने का अधिकार है। सोरेन ने बताया कि बकाया न मिलने से झारखंड के विकास और सामाजिक-आर्थिक परियोजनाओं पर बुरा असर पड़ रहा है। मुख्यमंत्री सोरेन ने इसी साल सितंबर महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मुद्दे पर एक पत्र भी लिखा था। इसमें उन्होंने कहा था झारखंड राज्य का सामाजिक-आर्थिक विकास मुख्य रूप से खनन और खनिजों से होने वाले राजस्व पर निर्भर करता है, जिसमें से 80 प्रतिशत कोयला खनन से आता है। झारखंड में काम करने वाली कोयला कंपनियों पर मार्च 2022 तक राज्य सरकार का लगभग 1,36,042 करोड़ रुपये का बकाया है। प्रधानमंत्री को भेजे गए पत्र में कोयला कंपनियों पर बकाया राशि की दावेदारी का ब्रेकअप भी दिया था। इसके अनुसार वाश्ड कोल की रॉयल्टी के मद में 2,900 करोड़,पर्यावरण मंजूरी की सीमा के उल्लंघन के एवज में 32 हजार करोड़, भूमि अधिग्रहण के मुआवजे के रूप में 41,142 करोड़ और इस पर सूद की रकम के तौर पर 60 हजार करोड़ रुपए बकाया हैं। मुख्यमंत्री सोरेन ने प्रधानमंत्री को भेजी गई चिट्ठी में कहा था कि जब झारखंड की बिजली कंपनियों ने केंद्रीय उपक्रम डीवीसी (दामोदर वैली कॉरपोरेशन) के बकाया भुगतान में थोड़ी देर की,तो हमसे 12 प्रतिशत ब्याज लिया गया और हमारे खाते से सीधे भारतीय रिजर्व बैंक से डेबिट कर लिया गया। उन्होंने कहा कि अगर हम कोयला कंपनियों पर बकाया राशि पर साधारण ब्याज 4.5 प्रतिशत के हिसाब से जोड़ें, तो राज्य को प्रति माह केवल ब्याज के रूप में 510 करोड़ रुपये मिलने चाहिए। उन्होंने कहा है कि इस बकाया का भुगतान न होने से झारखंड राज्य को अपूरणीय क्षति हो रही है। शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास, स्वच्छ पेयजल और अंतिम छोर तक कनेक्टिविटी जैसी विभिन्न सामाजिक योजनाएं फंड की कमी के कारण जमीन पर उतारने में दिक्कत आ रही है।

रॉयल्टी के मुद्दे पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव और प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने इस संबंध में भू-राजस्व विभाग के द्वारा कोल इंडिया को पत्र के माध्यम से 15 दिन के अंदर जवाब देने को कहा है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2022 में तत्कालीन कोयला मंत्री पीयूष गोयल ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि झारखंड की रॉयल्टी का बकाया पैसा लौटाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पष्ट रूप से कहा था कि रॉयल्टी का पैसा टैक्स के दायरे में नहीं आता है। सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि राज्य सरकार झारखंड से गुजरने वाली रेल माल गाड़ियों पर भी रॉयल्टी वसूलने की तैयारी में है। यह सरकार झुकने वाली नहीं है। कोयला कंपनियों को भी सख्त लहजे में सुप्रिया भट्टाचार्य ने कहा कि कंपनी के अधिकारी पहले राज्य सरकार को पैसा दें उसके बाद खनन कार्य करें। झारखंड से भाजपा के सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों पर सवाल खड़ा करते हुए सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि इस गंभीर मुद्दे पर वे चुप्पी क्यों साधे हुए हैं? मुख्यमंत्री सोरेन ने झारखंड के भाजपा सांसदों से अपील की है कि वे झारखंड की इस मांग पर आवाज बुलंद करें।

दूसरी ओर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने झामुमो की प्रेस वार्ता पर पलटवार करते हुए कहा कि सर्वप्रथम झारखंड की जनता को झामुमो को बकाया राशि का वर्ष वार ब्यौरा जारी करना चाहिए। यह बताना चाहिए कि जिस समय शिबू सोरेन कोयला मंत्री थे उस समय अगर कोयले की रॉयल्टी की कोई बकाया राशि बची थी तो उन्होंने कितना पैसा झारखंड को दिलवाया। प्रतुल ने हेमंत सरकार के गठबंधन दलों से यह भी जानना चाहा कि 10 वर्ष तक यूपीए सरकार जब शासन कर रही थी तो उस समय का कितना बकाया था और उस बकाया राशि में कितने का झारखंड को भुगतान हुआ? प्रतुल ने कहा कि अब झारखंड मुक्ति मोर्चा ने चुनाव पूर्व जिन योजनाओं की घोषणा की है उसके लिए शायद ढाई लाख करोड रुपए से भी ज्यादा की जरूरत हो। आंतरिक स्रोत से पैसा आ नहीं पा रहा है । जिसका सबसे बड़ा उदाहरण मईया सम्मान राशि की 2500 की किस्त अभी तक नहीं जारी होना है।अब झामुमो जनता से सहानुभूति बटोरने के लिए बहाने बना रही हैं। प्रतुल ने कहा कि झारखंड भाजपा झारखंडियों के हित के लिए जो भी उचित कदम हो वह उठाने को तैयार है। केंद्र और राज्य की सहमति से जो भी सही बकाया राशि सामने आएगी ,उसका भुगतान करने के लिए झारखंड भाजपा भी सकारात्मक कदम उठाएगी लेकिन सरकार को फर्जी नरेटिव और आंकड़ों की बाजीगरी का खेल बंद करना चाहिए। सरकार को सबसे पहले यह सार्वजनिक करना चाहिए कि वह जो 1,36,000 करोड़ रुपए का दावा कर रही है वह किस वर्ष में किस विभाग से संबंधित है। पूरा विस्तृत ब्यौरा देना चाहिए। राज्य सरकार के सिर्फ कहने से कि कोयला का बकाया, समता जजमेंट का बकाया और भूमि अधिग्रहण का बकाया है से बात नहीं बनेगी। इनको एक-एक चीजों का सिलसिलेवार तरीके से विस्तृत विवरण देना चाहिए। फिलहाल केंद्र, राज्य और भाजपा तीनों के इस मामले में अपने अपने तर्क हैं और इन सबके बीच झारखंड की जनता है जो इस मुद्दे पर गर्माती राजनीति को चुपचाप देख रही है। (विभूति फीचर्स)

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