देहरादून उत्तराखंड के प्रशासनिक इतिहास में एक नया और प्रेरणादायक अध्याय जुड़ गया है। राज्य गठन के बाद पहली बार किसी महिला आईएएस अधिकारी को आबकारी आयुक्त जैसा महत्वपूर्ण पद सौंपा गया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की दूरदर्शी सोच और महिला सशक्तिकरण की दिशा में यह साहसिक निर्णय न केवल प्रशासनिक बदलाव है, बल्कि सामाजिक चेतना और लैंगिक समानता की ओर एक मजबूत पहल भी है।
अनुराधा पाल: उम्मीदों की नई किरण
आईएएस अनुराधा पाल को आबकारी विभाग का प्रमुख बनाए जाने के पीछे केवल प्रशासनिक संतुलन नहीं, बल्कि सामाजिक सोच और महिलाओं के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण भी है। अनुराधा पाल को उनके संवेदनशील रवैये और निर्णायक क्षमता के लिए जाना जाता है। वे न केवल अनुभवी अधिकारी हैं, बल्कि जनसरोकारों को लेकर भी जागरूक और सजग रही हैं।
महिलाओं की आवाज को मिलेगा मंच
अब तक आबकारी आयुक्त जैसे पद पर केवल पुरुष अधिकारियों की तैनाती होती रही है। जबकि उत्तराखंड में शराब के विरोध में महिलाओं का संघर्ष दशकों से चला आ रहा है। उन्होंने गांव-गांव में शराब की दुकानों के खिलाफ आंदोलन किए, धरने दिए, लेकिन उनकी आवाज अक्सर अनसुनी रह गई। ऐसे में एक महिला अधिकारी की नियुक्ति से यह आशा जागी है कि महिलाओं की भावनाओं और संघर्षों को अब अधिक संवेदनशीलता और गंभीरता से सुना जाएगा।
चुनौतियों के बीच अवसर
अनुराधा पाल के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। एक ओर राज्य की राजस्व आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उन्हें आबकारी नीति को प्रभावी रूप से लागू करना होगा, वहीं दूसरी ओर समाज और खासकर महिलाओं की अपेक्षाओं पर भी खरा उतरना होगा। लेकिन उनके अनुभव और दृष्टिकोण को देखते हुए यह भरोसा जताया जा रहा है कि वे इन दोनों पक्षों में संतुलन स्थापित करने में सफल होंगी।
मुख्यमंत्री का संदेश: प्रशासनिक नहीं, सामाजिक परिवर्तन
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्पष्ट किया है कि यह कदम केवल एक प्रशासनिक बदलाव नहीं, बल्कि सामाजिक संतुलन और महिला सशक्तिकरण की दिशा में निर्णायक प्रयास है। इससे यह संकेत जाता है कि अब महिलाओं की भागीदारी केवल सीमित क्षेत्रों तक नहीं रहेगी, बल्कि नीति निर्धारण के उच्च पदों पर भी उनकी उपस्थिति प्रभावशाली होगी।
निष्कर्ष:
आईएएस अनुराधा पाल की आबकारी आयुक्त के रूप में नियुक्ति न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि एक व्यापक सामाजिक संदेश भी देती है। यह बदलाव केवल एक व्यक्ति की तैनाती नहीं, बल्कि एक सोच की शुरुआत है — जिसमें महिलाओं की भूमिका को नीति निर्माण और क्रियान्वयन में निर्णायक माना जाएगा। यह उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक सशक्त और दूरगामी कदम है, जो आने वाले समय में और भी परिवर्तनकारी सिद्ध हो सकता है।






