अल्मोड़ा वरिष्ठ पत्रकार नवीन बिष्ट द्वारा वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर एक उदगार———
“भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या हुआ आज कल दिल्ली में है जेरे बहस ये मुद्दआ” दुष्यन्त कुमार की यह पंक्तियां आज भी उतनी ही सामयिक हैं जिन हालातों से आहत या प्रेरित होकर कवि ने लिखी होंगी। देश-दुनियां में जो हालात सामरिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक हो याकि सामाजिक अपने संक्रणकाल से गुजर रही हैं। ऐसे में याद आ रही है किसी समाजशास्त्री / राजनीति शास्त्र के ज्ञाता की कही बात कि “दुनियां में हुई कोई बड़ी हलचल आम आदमी के चूल्हे की रोटी को प्रभावित करती है”। उदाहरण के लिए रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध जो अब परमाणु महायुद्ध के मुहाने में खड़ा है। उसने विश्व के आम जन को तो प्रभावित किया ही है। वहीं यूक्रेन व रूस के बीच इस समर में दोनों ओर के सैनिक और आम आदमी का जीवन परिवार होम हुए हैं। दोनो ओर के रहनुमा अपनी-अपनी जगह चाक-चौबन्द सुरक्षा घेरे में महफूज हैं। सामान्य नागरिक की बात न तो रसिया में है और नहीं यूक्रेन के सत्ताधीषों की चिन्ता का विषय ही बन पाया है। आज के दौर में देश-दुनिया का आम आदमी हासिए पर है, वह भारत हो या कि विश्व का कोई गांव । अब बात राजनीति मूल्यों की नहीं व्यक्ति केन्द्रित अभिमान पर आ खड़ी हुई है। सामान्य जन का राजनीतिक परिदृश्य में हासिए पर चले जाना प्रजातांत्रिक देश की जनता के भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं।
बहरहाल कमोबेस हम अपने आप को इस संदर्भ से विलग नहीं कर सकते हैं। यहां भी न तो सत्तासीन और ना ही प्रतिपक्ष को जनता के मूलभूत अन्तर द्वन्दों से कोई सरोकार है। आज केवल एक दूसरे पर राजनीतिक द्वेष से युक्त आरोप प्रत्यारोप तक सिमट कर रह गई है। जबकि मौजूदा दौर में महंगाई, बेरोजगारी पर विशेष तौर से विपक्ष की बहस केन्द्रित होनी चाहिए थी, इस पर कहीं चर्चा ही नहीं है। सत्ता पक्ष इसके लिए जिम्मेदार तो है ही, विपक्ष को इससे मुक्त नहीं किया जा सकता है। क्योंकि यह संविधान में प्रदत्त है कि हर व्यक्ति को गरीमा पूर्ण जीवन, सामजिक, आर्थिक सुरक्षा, मानवीय गरीमा आम आदमी को मिलनी चाहिए, क्या मिल रही है? नहीं तो यह बड़ा सवाल है। स्थिति यह है कि न तो इस सवाल को पूछने वाला ही दिखाई दे रहा है और ना ही जवाब देने वाला ही हाजिर है। राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के बीच आए दिन आरोप–प्रत्यारोपों का अंबार लग रहे हैं। जो प्रधान सवाल होने चाहिए वह नैपत्थ्य पर चले गए हैं।
इन दिनों सत्ता पक्ष व विपक्ष के बीच लोकतंत्र की हत्या जैसे आरोप लग रहे हैं। गौरतलब है कि विदेश की धरती पर कांग्रेस के अग्रिम पंक्ति के प्रमुख नेता राहुल गांधी के बयान के बाद, बात इतनी बढ़ गई है कि संसद नहीं चल रही है। लोकतंत्र को कौन आहत कर रहा है ये तो राजनीति शास्त्र के मर्मज्ञ ही तस्दीक कर सकते हैं। इस बहस के साथ गड़े मुदर्दों को उखाड़ने की रवायत बदस्तूर जारी है। खैर ! हर राजनीति का चितेरा “तू डाल-डाल मैं पात-पात” वाली कहावत चरितार्थ करता नजर आ रहा है।
दूसरी ओर विश्व गुरू बनने के लक्ष्य को सामने रखने वाले हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिस आत्मविश्वास के साथ अपनी बात रखते हैं, सुनने वाला मुतनइन दिखने लगता है। यह बात सोलह आने सही है कि जिस राजनीतिक व्यक्ति का आत्मविश्वास डिगता नहीं वह कभी भी हारता नहीं है। यह गुण लड़ने वाले को सदा विजय बनाता है।
मैं इसी उधेड़-बुन में लगा था कि तभी मेरे संपादक का फोन आ गया उन्होंने कहा कि कुछ स्टोरी लिखिए, मैं कनखियों से टीवी चैनल में दक्षिण की चुनावी सभा में दिए गए प्रधानमंत्री के भाषण का श्रवण कर रहा था। अनायास मुझे याद आ गया एक फिल्म में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का डायलाग, “हम जहां खड़े हो जाते हैं वहीं से लाइन शुरू होती है। मुझे लगा सच में जहां नरेन्द्र मोदी खड़े हो जाते हैं लाइन वहीं से शुरू हो जाती है। राजनीति का वर्तमान परिदृश्य तो यही बंया करता है।
एक पक्ष तो नरेन्द्र मोदी कहें या भाजपा का मीडिया प्रबंधन लाजवाब है जिसमें दूसरा कोई टिक नहीं पा रहा है। दूसरा पक्ष यह है कि विपक्ष की भूमिका में खड़ी कांग्रेस या दूसरे राजनीतिक दल हैं जो न तो जनता को अपनी बात ही समझा पा रहे हैं और नाही उनका विरोध कहीं मुखरित हो कर सामने दिखाई दे रहा है। विपक्ष की भूमिका में खड़ी कांग्रेस जैसी विशाल पार्टी कई बार नैपथ्य में दिखाई देने लगी है। कई बार लगता कहीं मीडिया ने विपक्ष को नकार सा क्यों दिया है।
जबकि महंगाई, बेरोजगारी, अडाणी को लेकर आरोप-प्रत्यारोप अपने चरम बिन्दु का स्पर्ष कर आगे निकल गई हो लेकिन भाजपा के चुनावों की विजय यात्रा अनवरत जारी है। “जबरा मारे रोने न दे” यह लोकोक्ति केन्द्र में बैठी भाजपा के आलाकमान की कार्य शैली को तस्दीक कर रही है। जिस प्रकार केन्द्र की भाजपा सरकार विपक्ष पर आक्रामक साबित हो रही है, लगता है विपक्ष को उठने का मौका नहीं मिल पा रहा है। बहरहाल पहले उत्तर अब दक्षिण भारत में भगवा लहराने के बाद भाजपा का उत्साह अतिरेक की दिशा में निर्वाद गति से बढ़ता दिखाई दे रहा है।
फिलवक्त यह कहना गलत नहीं होगा बिखरे विपक्ष के चलते 24 के चुनाव में भाजपा को सत्ताच्युत करने वाला कोई अर्जुन नहीं दिखाई दे रहा है। कांग्रेस के लगभग धराशायी होने की स्थिति के बाद आम आदमी पार्टी पर ताबड़ हमले, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के बाद आप के ताकतवर नेता मनीष शिसोदिया पर शराब घोटालों के आरोप लगे हुए हैं। जेल भेज दिए गए दिल्ली के उप मुख्यमंत्री का मामला आम आदमी पार्टी के लिए मर्मान्तक चोट है। कहा जा सकता है कि “जबरा मारे रोने न दे” ।
कुल मिला कर देश जिस स्थिति से गुजर रहा है आम जनता के अन्दर महंगाई, बेरोजगारी की चिंगारी सुलग रही है, लेकिन प्रतिरोध का स्वर मुखर होता नहीं दिख रहा है। कारण जो भी हो देर सवेर बस इतना समझ आ रहा है कि “जिस तरह चाहो बजालो इस सभा में, हम नहीं आदमी, हम झुनझुने हैं”।

