विधि-विधान पूर्वक खुल गये कपाट बाबा बद्रीनाथ हिमालय की गोद में, अलकनंदा के तट पर स्थित सनातन श्रद्धा का दिव्य धाम — श्री बद्रीनाथ मंदिर के कपाट आज प्रातः 6 बजे विधिविधान और वैदिक मंत्रोच्चार के बीच आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि साक्षात वैकुण्ठ के द्वार खुलने जैसा अलौकिक अनुभव था।
40 कुंतल पुष्पों से सुसज्जित श्री बद्रीविशाल मंदिर आज दिव्यता और भव्यता का प्रतीक बना रहा। जैसे ही घृत कंबल हटाकर भगवान विष्णु की चतुर्भुज मूर्ति के दर्शन हुए, सम्पूर्ण धाम ‘जय बद्री विशाल’ के जयकारों से गूंज उठा। भक्तों के अश्रुपूरित नेत्रों में भक्ति का सागर उमड़ पड़ा।
धार्मिक परंपराओं के अनुसार, शीतकाल में देवता स्वयं इस पावन स्थल पर आकर भगवान विष्णु की आराधना करते हैं, और ग्रीष्मकाल में मानवों को यह सौभाग्य प्राप्त होता है कि वे श्रीहरि के प्रत्यक्ष दर्शन कर सकें। यह वही पुण्य भूमि है जहाँ आदि गुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म की ज्योति प्रज्वलित की और चार धामों में से एक के रूप में बद्रीनाथ को प्रतिष्ठित किया।
कपाटोद्घाटन से पूर्व, माता लक्ष्मी जी को गर्भगृह से विधिपूर्वक निकालकर लक्ष्मी मंदिर में विराजमान किया गया, और भगवान कुबेर व उद्धव जी को गर्भगृह में स्थान प्रदान किया गया। श्री हरि नारायण की चतुर्भुज मूर्ति का अभिषेक, पुष्पों से श्रृंगार और गंध-पुष्प-धूप से पूजन कर उन्हें भक्तों के दर्शनार्थ प्रस्तुत किया गया।
अब अगले छह माह तक, नर-नारायण, नारद, उद्धव और कुबेर जी के साथ भगवान बद्रीविशाल के दिव्य दर्शन का लाभ श्रद्धालु उठा सकेंगे। यही नहीं, मंदिर परिसर स्थित गणेश जी, घटाकर्ण, आदि केदारेश्वर और माता मूर्ति मंदिर के कपाट भी इस पावन यात्रा के लिए खोल दिए गए हैं।
यह अवसर केवल एक दर्शन यात्रा नहीं, मोक्ष का सेतु है। जो एक बार बद्रीनाथ धाम में सच्चे मन से भगवान विष्णु की शरण में आता है, उसके जीवन के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। भगवान स्वयं कहते हैं —
“जो भक्त श्रद्धा से मेरे बद्रीनाथ स्वरूप के दर्शन करता है, मैं उसकी समस्त बाधाएँ हर लेता हूँ।”
तो आइए! इस ग्रीष्मकाल में आत्मा के कल्याण हेतु पधारिए बद्रीधाम। दिव्यता और शाश्वत शांति की अनुभूति कीजिए उस स्थल पर जहाँ स्वयं नारायण वास करते हैं।
जय श्री बद्री विशाल!
जय वैकुण्ठनाथ!
हर हर बद्री, घर घर बद्री!

