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December 14, 2024

दहेज उत्पीड़न के मामलों में अदालतों की न्याय व्यवस्था पर उठते सवाल

News Deskby News Desk
in उत्तराखंड, राजनीति
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फिर श्रद्धालुओं की जान पर भारी पड़ी अव्यवस्था* 
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दहेज उत्पीड़न के मामलों में अदालतों की न्याय व्यवस्था पर उठते सवाल

(मनोज कुमार अग्रवाल -विभूति फीचर्स)

देश में बनने वाला हर कानून नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए बनाया जाता है, ताकि हर पीड़ित को इंसाफ और उसका हक मिल सके। महिलाओं के साथ होने वाले तमाम तरह के अपराधों, शारीरिक-मानसिक शोषण, प्रताड़ना और हिंसा से उन्हें बचाने के लिए उन्हें कई कानूनी कवच दिए गए हैं, इससे उनकी स्थिति पहले से मजबूत हुई है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाएं गए कानूनों का दुरुपयोग बढ़ा है। आरोप लगाए जा रहे हैं कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने कानून व्यक्तिगत प्रतिशोध के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल किए जा रहे है। असंतुष्ट पत्नियां दहेज विरोधी कानून का भी दुरुपयोग धड़ल्ले से कर रही हैं।

ऐसी घटनाएं वास्तव में देखने को मिली हैं कि पति से संबंध तोड़ने से पहले नाराज पत्नियां हिंसा और उत्पीड़न का इल्जाम न सिर्फ पति के पूरे परिवार, बल्कि दूरदराज के रिश्तेदारों पर भी लगा देती हैं। अकसर ऐसे आरोप कोर्ट में सिद्ध नहीं होते, मगर उसके पहले आरोपी बनाए गए व्यक्तियों को कोर्ट-कचहरी की प्रक्रिया के दौरान लंबी परेशानी से गुजरना पड़ता है। ऐसा ही एक मामला सामने आया है, जिसने इस कानून के दुरुपयोग को उजागर किया है। परिवार की कलह से तंग आ चुके एक एआई इंजीनियर ने आत्महत्या कर ली है, जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। दरअसल सोशल मीडिया पर एक घंटा 20 मिनट का यह वीडियो वायरल हुआ है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) इंजीनियर अतुल सुभाष ने इस वीडियो को रिकॉर्ड करने के बाद बेंगलुरु स्थित अपने घर में फांसी लगा ली थी। वीडियो में अतुल ने पत्नी की ओर से दर्ज कराए गए दहेज प्रताड़ना के आरोप से पैदा हुई परिस्थितियों पर अपनी बात रखी है। उन्होंने लिखा है कि उनकी पत्नी और ससुराल वाले उनके ही पैसे से उन्हें प्रताड़ित कर रहे हैं। उनका आरोप है कि उनकी पत्नी उन्हें उनके बेटे से न मिलने देती है और न ही फोन पर बात कराती है। अतुल ने 24 पत्रों का एक सुसाइड नोट लिखा है, जिसमें अपनी पत्नी के साथ-साथ ससुराल वालों के खिलाफ कई गंभीर आरोप लगाए हैं। सुभाष के मामले ने दहेज कानून के दुरुपयोग पर बहस शुरू कर दी है। मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिले का रहने वाला अतुल अपनी नौकरी के चलते बेंगलुरु में रहता था। उनका ससुराल उत्तर प्रदेश के जौनपुर में था। उसने अपने सुसाइड नोट में पत्नी, ससुराल वालों और एक न्यायाधीश पर आत्महत्या, उत्पीड़न, जबरन वसूली और भ्रष्टाचार के लिए उकसाने का आरोप लगाया। ससुरालवालों पर आरोप है कि उन्होंने झूठा मामला दर्ज कराया और मामले के निपटारे के लिए 3 करोड़ रुपये देने की मांग की थी। आरोप है कि अतुल ने मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित होकर आत्महत्या जैसा घातक कदम उठा लिया। सुसाइड नोट के हर पन्ने पर न्याय मिलना चाहिए लिखा है। पत्नी निकिता और ससुराल वालों के साथ-साथ सुभाष ने जौनपुर में एक पारिवारिक न्यायालय के जज पर भी उनकी सुनवाई न करने का आरोप लगाया है। सुभाष ने अपने कथित उत्पीड़न को बताने के लिए एक वीडियो भी रिकॉर्ड किया। इसमें परिजनों से कहा गया है कि न्याय मिलने तक उनकी अस्थियों को विसर्जित न किया जाए। नोट में चार साल के बेटे के लिए भी एक संदेश था जिसे अतुल ने अलग से रखा था। नोट में अतुल ने अपने माता-पिता को उनके बच्चे की कस्टडी देने की भी मांग की। नोट और वीडियो का लिंक एक एनजीओ के व्हाट्सएप ग्रुप पर भेजा गया था, जिससे अतुल जुड़े हुए थे। सुभाष ने अपने नोट में आरोप लगाया कि पत्नी निकिता सिंघानिया ने उनके खिलाफ हत्या, यौन उत्पीड़न, पैसे के लिए उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और दहेज सहित नौ मामले दर्ज कराए थे। दरअसल दहेज कुप्रथा को रोकने के लिए हमारे देश में कई कानून बनाए हैं। असहाय महिलाओं के खिलाफ हिंसा को कम करने के लिए कानून बनाने पर जोर दिया गया था। इसके चलते दहेज निषेध अधिनियम, 1961 बना। दहेज की मांग के बाद घरेलू हिंसा की घटनाएं भी सामने आती रही हैं ऐसे में ‘घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 पारित किया गया। इसके साथ ही पुरानी आईपीसी में दहेज उत्पीड़न और दहेज हत्याओं को रोकने के लिए कई प्रावधान किए गए थे। आईपीसी की धारा 498 दहेज से पहले और बाद में किसी भी रूप में उत्पीड़न को दंडनीय और गैर-जमानती बनाती है। 1983 में संसद द्वारा एक आपराधिक अधिनियम ‘आईपीसी 498 ए’ पारित किया था जो कहता था कि दहेज वसूलने के लिए की गई क्रूरता पर तीन या अधिक वर्षों की अवधि की सजा और जुर्माना देना होगा। दहेज उत्पीड़न और दहेज हत्याओं को रोकने के लिए आईपीसी 1961 में एक नई धारा’ आईपीसी 304 बी’ जोड़ी गई। आईपीसी 304 बी में ‘दहेज हत्या’ का जिक्र है। भारतीय दंड संहिता की धारा 304 बी में कहा गया है कि अगर किसी महिला की शादी के सात साल के भीतर किसी भी प्रकार के जलने या शारीरिक चोट से मृत्यु हो जाती है या यह पता चला है कि उसकी मृत्यु से पहले वह अपने पति या पति के किसी अन्य रिश्तेदार द्वारा क्रूरता या उत्पीड़न के संपर्क में थी और इसका दहेज मांगने से संबंध है तब महिला की मृत्यु को दहेज मृत्यु माना जाएगा। दहेज हत्या के लिए सजा सात साल के कारावास की न्यूनतम सजा या आजीवन कारावास की अधिकतम सजा है। कानून पारित होते ही दहेज उत्पीड़न के हजारों मामले दर्ज होने लगे। कई बार यह विवाहित महिला के लिए सुरक्षा के बजाय हथियार बन गया जिस पर समय-समय पर अदालतों ने भी चिंता जताई। अतुल का मामला सामने आने के बाद एक बार फिर से शीर्ष न्यायालय ने चिंता जतायी है। सुप्रीम कोर्ट में एक अलग मामले में महिलाओं द्वारा अपने पतियों के खिलाफ दर्ज कराए गए वैवाहिक विवाद के मामलों में क्रूरता कानून के दुरुपयोग के खिलाफ चेतावनी दी। अदालत ने कहा है कि दहेज उत्पीड़न के मामलों में अदालतों को कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए और पति के सगे-संबंधियों को फंसाने की प्रवृत्ति को देखते हुए निर्दोष परिवार के सदस्यों को अनावश्यक परेशानी से बचाना चाहिए। जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि वैवाहिक विवाद से उत्पन्न आपराधिक मामले में परिवार के सदस्यों की सक्रिय भागीदारी को इंगित करने वाले विशिष्ट आरोपों के बिना उनके नाम का उल्लेख शुरू में ही रोक दिया जाना चाहिए। हाल के वर्षों में देश भर में वैवाहिक विवादों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, साथ ही विवाह संस्था के भीतर कलह और तनाव भी बढ़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप, आईपीसी की धारा 498 ए (पत्नी के खिलाफ पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता) जैसे प्रावधानों का दुरुपयोग करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, ताकि पत्नी द्वारा पति और उसके परिवार के खिलाफ व्यक्तिगत प्रतिशोध को बढ़ावा दिया जा सके। देखा जाए तो जरूरत है कि इस कानून की समीक्षा की जाए। ऐसा नहीं है कि महिलाओं पर उत्पीड़न कम हो गया है और सभी मामले झूठे दर्ज कराए जाते हैं, लेकिन कुछ झूठे मामले जरूर सामने आ रहे हैं। इन कानूनों का उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा है। लेकिन इसे संतुलित रूप से लागू करना होगा, ताकि इनके दुरुपयोग को रोका जा सके।

अतुल ने जो कदम उठाया वह उचित नहीं ठहराया जा सकता है बेहतर होता कि वह न्यायालय के भ्रष्टाचार को किसी तरह प्रूफ बना कर उजागर करता और अपने माता-पिता के बुढ़ापे का भी ख्याल करता सिर्फ रील बनाने या 23 पेज का बयान लिखकर जान गंवाने से बेहतर था कि वह अपना संघर्ष जारी रखता। एक इंजीनियर होने के बावजूद उसने अपने जीवन का फैसला बेहद गलत किया क्योंकि जीवन खत्म करने के बाद कोई न्याय प्रतिपूर्ति नही कर सकता है। (विभूति फीचर्स)

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