वरिष्ठ पत्रकार डाक्टर मदन मोहन पाठक
मित्रो “पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है” — यह उक्ति केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि उस सशक्त माध्यम का प्रतीक है जो समाज को जागरूक, सचेत और सजग बनाता है। 30 मई का दिन इस स्तंभ की नींव रखने वाली भाषा हिंदी और उसके पहले समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिन हम न केवल हिंदी पत्रकारिता के उद्भव को स्मरण करते हैं, बल्कि इसके समाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक योगदान का सम्मान भी करते हैं।
हिंदी पत्रकारिता का उद्भव
हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत 30 मई 1826 को हुई, जब पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने कलकत्ता (अब कोलकाता) से ‘उदन्त मार्तण्ड’ नामक हिंदी साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन आरंभ किया। यह एक क्रांतिकारी कदम था क्योंकि उस समय अंग्रेजी और फारसी भाषा का प्रभुत्व था। ‘उदन्त मार्तण्ड’ केवल एक समाचार पत्र नहीं था, वह एक आंदोलन था — भारतीयों को उनकी ही भाषा में सूचना और अधिकारों से जोड़ने का प्रयास।
हालाँकि आर्थिक कठिनाइयों और सरकार की उपेक्षा के कारण यह पत्र कुछ ही महीनों में बंद हो गया, परंतु इसने जो चिंगारी जगाई, वह आज भी हिंदी पत्रकारिता की लौ में जल रही है।
स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
हिंदी पत्रकारिता ने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जब अंग्रेजी हुकूमत द्वारा भारतीयों की आवाज़ को दबाया जा रहा था, तब हिंदी पत्र-पत्रिकाओं ने स्वतंत्रता की भावना को आम जन तक पहुँचाया।
‘प्रताप’, ‘अभ्युदय’, ‘कर्मवीर’, ‘सुधाकर’, ‘भारत मित्र’ जैसे पत्र केवल समाचार नहीं देते थे, वे जनता के भीतर क्रांति की आग भरते थे। गणेश शंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी, भारतेंदु हरिश्चंद्र जैसे पत्रकारों ने अपनी कलम से साम्राज्य को चुनौती दी।
पत्रकारिता एक तलवार की तरह तेज हो गई थी, और हिंदी इसका धारदार स्वरूप बन चुकी थी।
स्वतंत्र भारत में हिंदी पत्रकारिता का विकास
स्वतंत्रता के बाद पत्रकारिता की दिशा बदली, पर उसकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई। अब पत्रकारिता का कार्य केवल शासन की आलोचना करना नहीं रहा, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा, सत्य का प्रसार, जन समस्याओं की आवाज़ बनना और लोक-संस्कृति को बढ़ावा देना भी इसका दायित्व बना।
हिंदी समाचार पत्रों ने गाँव-गाँव तक सूचना पहुँचाई और जन-जागरण का माध्यम बने। ‘दैनिक जागरण’, ‘राजस्थान पत्रिका’, ‘अमर उजाला’, ‘हिंदुस्तान’ जैसे समाचार पत्रों ने हिंदी पत्रकारिता को नई ऊँचाई दी।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य और चुनौतियाँ
आज के डिजिटल युग में पत्रकारिता एक नई दुनिया में प्रवेश कर चुकी है। ऑनलाइन पोर्टल्स, यूट्यूब चैनल, सोशल मीडिया पर हिंदी पत्रकारिता का स्वरूप आधुनिक हो गया है। अब समाचार तुरंत लोगों तक पहुँचते हैं और प्रतिक्रिया भी तुरंत मिलती है।
लेकिन साथ ही कुछ गंभीर चुनौतियाँ भी उभर रही हैं:
तथ्यों से समझौता
भ्रामक समाचार (फेक न्यूज़)
मीडिया की निष्पक्षता पर संदेह
व्यावसायिक दबाव
इन चुनौतियों के बावजूद, कई पत्रकार आज भी निर्भीकता से सच को सामने ला रहे हैं, और हिंदी को जन-जन की आवाज़ बना रहे हैं।
हिंदी पत्रकारिता दिवस का महत्व
30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाना केवल अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि भविष्य की प्रेरणा है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि एक भाषा केवल संप्रेषण का माध्यम नहीं, बल्कि एक संस्कृति, चेतना और आंदोलन का प्रतिनिधित्व कर सकती है।
- यह दिवस हमें सिखाता है कि पत्रकारिता एक कर्तव्य है — सत्य का, समाज का, संविधान का।
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उपसंहार
हिंदी पत्रकारिता का सफर संघर्ष से शुरू हुआ था और आज भी यह समाज की सच्ची तस्वीर सामने लाने में संघर्षरत है। इस पत्रकारिता दिवस पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम न केवल हिंदी भाषा को सम्मान दें, बल्कि पत्रकारिता के मूल मूल्यों — सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता और समाजहित — को भी बनाए रखें।
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प्रेरणास्पद पंक्तियाँ
“कलम की स्याही से लिखी जाती है क्रांति की कहानी,
हिंदी पत्रकारिता है जनभावनाओं की सच्ची जुबानी।
न डरे, न झुके, न बिके यह आवाज़,
सच के लिए लड़े, यही इसका अंदाज़।”






