वाराणसी, 18 मई 2025। श्री विद्यामठ, गंगातट पर आयोजित विशेष व्याख्यान के दौरान उत्तराम्नाय ज्योतिष पीठाधीश्वर, जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि मनुस्मृति न केवल लौकिक बल्कि पारलौकिक जीवन को भी संयमित और उन्नत करती है। उन्होंने कहा कि आज देश में एक षड्यंत्र के तहत मनुस्मृति के विरुद्ध वातावरण तैयार किया जा रहा है, जबकि मनुस्मृति ने ही मानव समाज को पशुता से ऊपर उठाकर संस्कृति, धर्म और कर्तव्य की दिशा में अग्रसर किया।
शंकराचार्य ने कहा, “कुछ लोग यह प्रचार कर रहे हैं कि देश की सभी समस्याओं की जड़ मनुस्मृति है और डॉ. अम्बेडकर ने इसे जलाकर संविधान दिया, जिससे समाज को कुछ राहत मिली। यह सोच पूरी तरह से गुमराह करने वाली और सनातन धर्म को कमजोर करने की एक सुविचारित साजिश है।”
मनुस्मृति ने नहीं बनाई वर्ण व्यवस्था
शंकराचार्य जी ने स्पष्ट किया कि मनु महाराज ने कभी किसी को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र नहीं बनाया। उन्होंने तो केवल पहले से विद्यमान चार वर्णों के कर्तव्यों का वर्णन किया। आज के संदर्भ में लोग ही जातियों को एससी, एसटी, ओबीसी आदि नामों से पुकारते हैं। उन्होंने कहा, “सिर्फ कहने से कोई ब्राह्मण या शूद्र नहीं बनता, यह उसके कर्म और व्यवहार से तय होता है।”
आरक्षण और विभाजन की राजनीति पर कटाक्ष
शंकराचार्य जी ने डॉ. भीमराव अंबेडकर की भूमिका पर भी प्रकाश डालते हुए कहा, “अंबेडकर जी ने चार वर्ण समाप्त करने की बात कही थी, लेकिन आज तक वह व्यवस्था लागू नहीं हो सकी। उल्टा समाज आरक्षित और अनारक्षित वर्गों में बंट गया, जिससे सामाजिक द्वंद और राजनीति को बढ़ावा मिला।”
उन्होंने यह भी कहा कि बदले की भावना कभी समाधान नहीं देती, बल्कि संघर्ष को जन्म देती है। शूद्र को ‘पैर’ कहे जाने को लेकर उन्होंने व्याख्या की, “पैर शरीर का महत्वपूर्ण अंग है, उसके बिना शरीर चल नहीं सकता। जो इसे अपमान समझते हैं, वे फिर शरीर में पैर क्यों रखते हैं? चरण और हथेली ही शरीर की ऊर्जा का केन्द्र हैं।”
हर हिंदू घर में हो मनुस्मृति
शंकराचार्य जी ने यह भी कहा कि जैसे हर मुसलमान के घर में कुरान और हर ईसाई के घर में बाइबिल होती है, वैसे ही हर हिंदू के घर में मनुस्मृति का होना आवश्यक है। यह ग्रंथ न केवल समाज को संयमित करता है, बल्कि मोक्ष की ओर भी मार्गदर्शन करता है।

