Wednesday, October 29, 2025
Devbhoomi News service
Advertisement
  • उत्तराखंड
  • देश
  • विदेश
  • राजनीति
  • ज्योतिष
  • धार्मिक
  • खेल
  • मौसम
  • मनोरंजन
  • शिक्षा
  • रोजगार
  • कृषि
  • व्यापार
No Result
View All Result
  • उत्तराखंड
  • देश
  • विदेश
  • राजनीति
  • ज्योतिष
  • धार्मिक
  • खेल
  • मौसम
  • मनोरंजन
  • शिक्षा
  • रोजगार
  • कृषि
  • व्यापार
No Result
View All Result
Devbhoomi News service
No Result
View All Result

September 10, 2025

भूदान आंदोलन के प्रणेता आचार्य विनोबा भावे

News Deskby News Desk
in उत्तराखंड, देश, शिक्षा
0
भूदान आंदोलन के प्रणेता आचार्य विनोबा भावे
Spread the love

(निमिषा सिंह-विभूति फीचर्स)

1947 में हमारा देश आजाद हुआ। अंग्रेज तो चले गए पर पीछे छोड़ गए एक ऐसा रूढ़िवादी भारतीय समाज जो अशिक्षा, जाति व्यवस्था और भयंकर गरीबी के संकट से जूझ रहा था। यकीनन जिससे निजात पाने के लिए अभी एक और लंबी लड़ाई लड़नी थी। अंग्रेजी सरकार जाते जाते भारत को चारों तरफ से कमजोर बनाकर गई। कई लोग तो इस तरह से गरीब हो गए थे कि उनके पास रहने तक के लिए जगह नहीं थी। वर्ष 1951, लोगों के बीच खासकर ग्रामीणों तक यह खबर फैल गयी थी कि कोई संत निकला है जो दान में भूमिहीनों के लिए जमीन मांगता है और कहता है कि हवा, पानी और आसमान की तरह जमीन भी ईश्वर की बनाई हुई है जो सबके लिए है। आप मुझे अपना बेटा मानकर अपनी जमीन का छठा हिस्सा दे दीजिए। भूदान आंदोलन के जनक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी एवं अहिंसा के प्रबल समर्थक आचार्य विनोबा भावे नवंबर 1951 में पूरे उत्साह के साथ दिल्ली से उत्तर प्रदेश की ओर पद यात्रा पर निकल पड़े। पूरे देश की नजर विनोबा के भूदान यज्ञ की ओर टिक गयी। भूदान आंदोलन की शुरुआत ऐसे समय में की गई जब देश में जमीन को लेकर रक्तपात होने की आशंका उत्पन्न हो गई थी। तेलंगाना और फिर उत्तर प्रदेश की भूदान यात्रा के तहत अप्रैल 1952 में सेवापुरी में हुए चौथे सर्वोदय समाज सम्मेलन में सर्व सेवा संघ ने अगले दो सालों में पूरे देश भर में 25 लाख एकड़ भूदान प्राप्त करने का संकल्प किया। इसी सम्मेलन में बिहार से कुछ अग्रणी समाज सेवक लक्ष्मी बाबू, ध्वजा बाबू, रामदेव बाबू और वैद्यनाथ बाबू आये थे जिनका इरादा विनोबा जी को बिहार लाना था। विनोबा ने इनसे बिहार में भूदान के तहत चार लाख एकड़ हासिल करने की बात कही। लक्ष्य काफी मुश्किल था बावजूद इसके इन नेताओं ने विनोबा की बात कबूल कर ली और इस तरह बिहार में विनोबा जी का आना तय हो गया। संयुक्त बिहार ( झारखंड तब बिहार का अंग था) में भूदान और ग्रामदान अभियान के लिए विनोबा छह बार आए और गए। एक तरफ तो समाजवादी दल,सर्वोदयी नेताओं और रचनात्मक कार्यकर्ताओं और जनता के समर्थन तथा सहयोग से भूदान आंदोलन में तेजी आ रही थी वहीं दूसरी तरफ साम्यवादी कार्यकर्ताओं द्वारा इस आंदोलन का विरोध किया जा रहा था। विनोबा के बिहार में प्रवेश करते ही साम्यवादियों का विरोध और तेज हो गया। उनकी शिकायत थी कि भीख मांगने से क्रांति नहीं आ सकती है। विनोबा ने बिहार प्रवेश के पहले ही दिन दुर्गावती में कहा था कि मैं कम्युनिस्टों को कहना चाहता हूं कि हिन्दुस्तान में क्रांति किस ढंग से हो सकती है यह मैं आपसे बेहतर जानता हूं। मैं वेदों से लेकर गांधी तक के सारे विचार घोलकर पी गया हूं। सब विचारों का अध्ययन किया है। वेदांत समझे बिना यहां कोई भी क्रांति नहीं हो सकती है। अगर आप आत्मा के टुकड़े करेंगे वर्ग बनाएंगे और कटुता तथा द्वेष फैलाएंगें तो उससे क्रांति नहीं होगी। मैं भूमिहीनों के लिए भीख नहीं उनका हक मांगने आया हूं। बिहार के बड़े कांग्रेसी नेता और सरकार चला रहे श्रीकृष्ण सिंह और अनुग्रह नारायण सिंह ने भूदान आंदोलन को अपना समर्थन दिया। महान समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण भी भूदान आंदोलन में कूद पड़े। बिहार खादी समिति और बिहार गांधी स्मारक निधि ने भी भूदान कार्य में अपने को पूरा झोंक दिया। प्रांतीय भूदान आंदोलन समिति के लक्ष्मी बाबू सहित रामदेव बाबू, ध्वजा बाबू, रामचरण बाबू, गजानन दास, गोपाल झा शास्त्री, भवानी सिंह, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सहरसा, रांची जिले पूरी तरह से सक्रिय हो गए। इसके अलावा संथालपरगना में मोतीलाल केजरीवाल, शाहाबाद में प्रद्युम्न मिश्र, भागलपुर में बोधनारायण मिश्र, शुभकरण चुड़ीवाला, मानभूमि में लालबिहारी सिंह और शीतल प्रसाद तायल, सारण जिले में हीरालाल सर्राफ, पटना जिले में अवध बिहारी सिंह, पूर्णिया जिले में वैद्यनाथ प्रसाद चौधरी, चंपारण जिले में बिहार कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पंडित प्रजापति मिश्र ने भूदान आंदोलन में खुद को झोंक दिया। मुंगेर जिले में खादीग्राम भूदान आंदोलन का केन्द्र बन गया। दादा धर्माधिकारी, विमला ठकार, शंकरराव देव और धीरेन्द्र भाई जगह- जगह सभाएं करने लगे जिससे भूदान आंदोलन के अनुकूल माहौल बनने लगा। बोधगया में जिले के करीब पांच सौ कार्यकर्ताओं ने एक लाख एकड़ भूमि भूदान में प्राप्त करने का संकल्प लिया। गया के बाद पलामू और रांची की पदयात्रा के बाद विनोबा लोहरदग्गा गए। वहां से सिंहभूम जिले में पदयात्रा आरंभ हुई। उनकी यात्रा से भूदान प्राप्ति में अच्छी प्रगति होने लगी थी। चांडिल पहुंचते-पहुंचते विनोबा की तबियत बिगड़ने लगी। 106 डिग्री बुखार रहने लगा था। विनोबा जी ने अंग्रेजी दवा लेने से इनकार कर दिया आखिरकार डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद और बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री कृष्ण बाबू के आग्रह पर उन्होंने दवा ली। स्वास्थ्य में सुधार के बाद विनोबा जी के चांडिल में रहते हुए सर्वोदय समाज का पांचवा वार्षिक सम्मेलन मार्च 1953 में हुआ। इसमें राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद और जयप्रकाश नारायण ने भाग लिया।विनोबा ने इस सम्मेलन में देश भर से आए प्रतिनिधियों को अपने- अपने प्रांत जाकर अपना एक साल तक का समय भूदान कार्य के लिये देने की अपील की। चांडिल में 87 दिनों तक ठहरने के बाद अगला पड़ाव मानभूमि जिले के झरिया में था। यहां विनोबा ने कहा – हमने सुना कि झरिया एक बड़ा कुरूक्षेत्र है यहां लड़ाइयां चलती हैं। यहां कितने दुर्योधन दुःशासन और कितने कौरव पुत्र हैं हम नहीं जानते लेकिन यहां मजदूर अवश्य रहते हैं। उनसे काम लेना है और हर हालत में लेना है। कोयला निकलवाना है। अगर जमीन से कोयला नहीं निकला तो देश का मुंह काला हो जाएगा। कहते हैं कि यहां गुंडों का राज चलता है। एक गुंडे वे हैं जो गुंडे कहलाते हैं और दूसरे वे हैं जो सेनापति या कार्यकर्ता कहलाते हैं। जब तक देश की रक्षा गुंडों पर निर्भर है गुंडों का ही राज चलेगा भले चाहे जो नाम दें। अगला पड़ाव हजारीबाग जिले में रहा जहां से ताल्लुक रखने वाले बिहार के राजस्व मंत्री कृष्णवल्लभ सहाय और रामगढ़ के राजा कामाख्या नारायण सिंह ने भूदान कार्य में बड़ा सहयोग दिया। हजारीबाग में 21 दिनों की पदयात्रा के बाद विनोबा जी फिर गया पहुंचे। अब तक गया जिला पूरे भारत का मोर्चा बन चुका था। विनोबा के पवनार आश्रम और वर्धा से लोग गया पहुंच गए थे। स्कूल काॅलेज के नौजवान भी भूदान कार्य में जुट गए थे। गया जिला उस वक्त न केवल बिहार अपितु संपूर्ण देश की प्रयोग भूमि बना हुआ था। गया जिले में 27 दिनों के कार्यक्रम के बाद विनोबा जी पलामू जिले की ओर गए जहां रंका में विनोबा जी दो दिन ठहरे। रंका के राजा गिरिवरनारायण सिंह ने जोत और परती जमीन सहित कुल एक लाख दो हजार एक एकड़ जमीन दान में दे दी। पलामू के बाद वे फिर रांची गए और यहां उन्होंने बिहारवासियों के नाम एक पत्र जारी किया। पत्र में उन्होंने लिखा- मैं भूदान के सिलसिले में बिहार प्रदेश की यात्रा कर रहा हूं। बिहार से मैंने 32 लाख एकड़ की मांग की है जो भूमिहीनों में बांटी जा सके। अब यह तो नहीं हो सकता कि मै खुद हर गांव पहुंचूं। इसलिए मेरा आपसे निवेदन है कि आप ही अपनी जमीन का दानपत्र हमारे कार्यकर्ता के पास पहुंचा दे। हमारा भरोसा है कि जैसे अहिंसा की ताकत से हमने राजनीतिक आजादी हासिल की वैसे आर्थिक आजादी का मसला भी आप हम मिलकर हल कर लेंगे। पूरे प्रदेश में भूदान प्राप्ति में गति आ गयी थी इसी क्रम में संथालपरगना जिले की यात्रा शुरू हुई जहां के अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी मोतीलाल केजरीवाल ने अपनी संपत्ति और परिवार को गांधीजी के काम में अर्पित कर दिया था। सेवकों की एक बड़ी फौज भूदान कार्य के लिए उपलब्ध थी। अपनी यात्रा के क्रम में विनोबा देवघर पहुंचे। देवघर का शिवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक है। लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन-पूजन को आते हैं लेकिन मंदिर में हरिजन प्रवेश निषिद्ध था। विनोबा जी दर्शन को जानेवाले नहीं थे लेकिन सरदार पंडा के आश्वासन और आग्रह पर विनोबा मंदिर में गए जहां कट्टरपंथी पंडों ने उनपर हमला कर दिया लेकिन विनोबा बचा लिये गए। देवघर की घटना पर देश भर में गहरी प्रतिक्रिया हुई और पंडों ने अपनी तरफ से हरिजनों के लिए मंदिर के दरवाजे खोल दिए। कट्टरपंथी पंडों के हमले को प्रसादी बताते हुए विनोबा दक्षिण भागलपुर की ओर प्रस्थान कर गए।

दक्षिणी भागलपुर में 22 दिनों की पदयात्रा के बाद विनोबा मुंगेर आए। मुंगेर में विनोबा जी ने कहा- हमें एक लाख दानपत्र मिले हैं। यह कोई छोटी बात नहीं। मुंगेर में 17 दिनों की पदयात्रा के बाद विनोबा जी उत्तर बिहार की ओर बढ़े। मोकामा बेगूसराय होते हुए विनोबा जी ने पूर्णिया जिले में प्रवेश किया जहां 3,334 दानपत्रों से उनका स्वागत किया गया। इसमें 13,614 एकड़ जमीन थी। इसके बाद दरभंगा महराज कामेश्वर सिंह ने कुरसेला आकर एक लाख अठारह हजार एकड़ का दानपत्र विनोबा जी को समर्पित किया। पूर्णिया, सहरसा और बाद में दरभंगा जिले में मानो दानपत्रों की वर्षा ही शुरू हो गयी। यह वह दौर था जब दानपत्र मांगनेवालों की ही कमी थी देनेवालों की नहीं। जहां भी विनोबा जी जाते रास्ते में और पड़ावों पर लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती। कवि दुखायल घूम-घूमकर अपने गीतों से भूदान का प्रचार कर रहे थे। इसी क्रम में विनोबा जी द्वारा भूमि वितरण कार्य शुरू क्रिया गया। सरकार द्वारा भूदान एक्ट पास किया गया। यह सुनिश्चित किया गया कि दान में मिली जमीन का बंटवारा व्यवस्थित तरीके से हो सके। बिहार में भूमि वितरण की शुरूआत गया जिले से ही हुई। इस समय तक भूदान आंदोलन की पूरे देश में समर्पित सेवकों की एक अपनी सेना खड़ी हो गयी थी। शुरू के वर्षो में विनोबा जी ने लोगों से अपील की कि आप हमारी जेल कुछ समय के लिए कबूल कीजिए और भूदान का काम कीजिए। बिहार में ग्यारह सौ से अधिक लोगों ने जीवनदान का संकल्प लिया। विनोबा जी की बिहार यात्रा की अब समाप्ति हो रही थी। बिहार से विदाई के मौके पर आखिरी पड़ाव ढेकशिला में विनोबा जी को साढ़े सोलह हजार दानपत्रों से पचपन हजार एकड़ का दान समर्पित किया गया। विदाई के मौके पर विनोबा ने कहा कि मैं कह सकता हूं कि बिहार में ईश्वरीय प्रेम का साक्षात्कार हुआ। बिहार के लिए मेरे मन में एक स्वप्न था और है। यहां के लोगों ने मुझे आत्मीय भाव से माना और बहुत प्रेम दिया। मैं अधिक प्रेम संपन्न होकर यहां से जा रहा हूं इसलिए इस यात्रा को हम आनंद यात्रा कहते है। भूदान आंदोलन 13 वर्षों तक जारी रहा और इस दौरान विनोबा भावे ने देश के विभिन्न हिस्सों (कुल 58,741 किलोमीटर की दूरी) की पदयात्रा की और 4.4 मिलियन एकड़ भूमि एकत्र करने में सफल रहे, जिसमें से लगभग 1.3 मिलियन भूमि गरीब भूमिहीन किसानों के बीच वितरित की गयी।

दुखद है कि भूदान आंदोलन में दान की गई सभी ज़मीनें ज़रूरतमंदों को वितरित नहीं की जा सकीं जिसका कारण प्रशासनिक लापरवाही, भ्रष्टाचार और ज़मीन के बँटवारे से जुड़ी कानूनी जटिलताएँ रहीं। कई राज्यों में लाखों एकड़ भूमि का वितरण अटक गया और भू-मालिकों के वंशजों ने अवैध कब्जा कर लिया या फिर ज़मीन की खरीद-बिक्री कर ली गई। विशेषकर बिहार,झारखंड और उत्तर प्रदेश में, जहाँ प्रशासनिक उदासीनता और भूमाफियाओं के कब्जे के कारण दान की हुई जमीनें भूमिहीन किसानों तक नहीं पहुँच पाई। *(विभूति फीचर्स)*

Previous Post

टिहरी में बड़ा हादसा: चंबा के पास बस पलटी, 2 की मौत – 13 यात्री घायल

Next Post

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में हिमालय दिवस का आयोजन विशेषज्ञों ने हिमालय संरक्षण और सतत विकास पर दिया जोर

Search

No Result
View All Result

ताज़ा खबरें

  • मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने किया पिथौरागढ़ के सीमांत गांव मिलम का दौरा
  • दैनिक राशिफल एवं पंचांग आइये जानते हैं कैसा रहेगा आपका दिन
  • अल्मोड़ा के संदीप विष्ट बने प्रदेश महासचिव — कांग्रेस सेवा दल (युवा ब्रिगेड)
  • जागेश्वर हमारी आस्था और विश्वास का केंद्र है, इसे भव्य और दिव्य स्वरूप दिया जाएगा” — मुख्यमंत्री धामी
  • भूकम्पीय आपदा से निपटने को तैयार हो रहा अल्मोड़ा प्रशासन

Next Post
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में हिमालय दिवस का आयोजन     विशेषज्ञों ने हिमालय संरक्षण और सतत विकास पर दिया जोर

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में हिमालय दिवस का आयोजन विशेषज्ञों ने हिमालय संरक्षण और सतत विकास पर दिया जोर

न्यूज़ बॉक्स में खबर खोजे

No Result
View All Result

विषय तालिका

  • Uncategorized
  • अपराध
  • आरोग्य
  • उत्तराखंड
  • कृषि
  • केरियर
  • खेल
  • ज्योतिष
  • देश
  • धार्मिक
  • मनोरंजन
  • महाराष्ट्र
  • मुंबई
  • मौसम
  • राजनीति
  • रोजगार
  • विदेश
  • व्यापार
  • शिक्षा

सम्पर्क सूत्र

मदन मोहन पाठक
संपादक

पता : हल्द्वानी - 263139
दूरभाष : +91-9411733908
ई मेल : devbhoominewsservice@gmail.com
वेबसाइट : www.devbhoominewsservice.in

Privacy Policy  | Terms & Conditions

© 2021 devbhoominewsservice.in

No Result
View All Result
  • उत्तराखंड
  • देश
  • विदेश
  • राजनीति
  • ज्योतिष
  • धार्मिक
  • खेल
  • मौसम
  • मनोरंजन
  • शिक्षा
  • रोजगार
  • कृषि
  • व्यापार

© 2022 Devbhoomi News - design by Ascentrek, Call +91-8755123999