हल्द्वानी रेलवे भूमि अतिक्रमण मामले में सुप्रीम ने नैनीताल हाई कोर्ट द्वारा दिए फैसले पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और रेलवे को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट अब अगली सुनवाई सात फरवरी रखी है। कोर्ट के आदेश पर अब सात फरवरी तक बुलडोजर नहीं चल पायेगा। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा है कि बिना मालिकाना हक की जांच किये बगैर रेलवे भूमि पर से अतिक्रमण नहीं हटा सकते हैं। और राज्य सरकार से कहा कि इस मामले में मानवीय पहलुओं को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता।गुरूवार को सुप्रीम कोर्ट में करीब आधा घंटा इस मामले पर बहस चली। बहस की शुरुआत में अतिक्रमण हटाने के खिलाफ याचिका दायर करने वाले वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि लोगों को कोई अवसर नहीं दिया गया। यह कोविड के समय में हुआ। उन्होंने शीर्ष अदालत के सामने नैनीताल हाई कोर्ट के आदेश को पढ़ा और कहा कि वहां पक्के निर्माण हैं, स्कूल और कॉलेज हैं. याचिकाकर्ताओं के वकील ने शीर्ष अदालत से कहा कि प्रभावित होने वाले लोगों का पक्ष पहले भी नहीं सुना गया था और फिर से वही हुआ। हमने राज्य सरकार से हस्तक्षेप की मांग की थी। रेलवे के स्पेशल एक्ट के तहत हाई कोर्ट ने कार्रवाई करके अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया।इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि उत्तराखंड या रेलवे की तरफ से कौन है? रेलवे का पक्ष रखते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने शीर्ष अदालत को बताया कि कुछ अपील पेंडिंग हैं। लेकिन किसी भी मामले में कोई रोक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोग कई सालों से वहां रह रहे हैं। उनके पुनर्वास के लिए कोई स्किम? आप केवल 7 दिनों का समय दे रहे हैं और कह रहे हैं खाली करो. यह मानवीय मामला है. उत्तराखंड सरकार की तरफ से कौन है? सरकार का स्टैंड क्या है इस मामले में? शीर्ष अदालत ने पूछा कि जिन लोगों ने नीलामी में लैंड खरीदा है, उसे आप कैसे डील करेंगे? लोग 50/60 वर्षों से वहां रह रहे हैं। उनके पुनर्वास की कोई योजना तो होनी चाहिए।जस्टिस जे कौल ने कहा कि हमें एक व्यावहारिक समाधान खोजना होगा। कई कोण हैं, भूमि की प्रकृति, प्रदत्त अधिकारों की प्रकृति इन पर विचार करना होगा ताकि मानवीय मूल्यों को ध्यान में रखकर कोई समाधान निकाला जा सके।

