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April 16, 2025

पहाड़ के लिए कष्टकारी हो गया है अनियंत्रित जन पर्यटन!

News Deskby News Desk
in उत्तराखंड, मनोरंजन, शिक्षा
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पहाड़ के लिए कष्टकारी हो गया है अनियंत्रित जन पर्यटन!

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वरिष्ठ पत्रकार प्रयाग पांडे

नैनीताल पहाड़ी क्षेत्रों के संदर्भ में आमतौर पर गर्मियों के दिनों को ‘पर्यटन मौसम’ माना जाता है। इस लिहाज से अभी पर्यटन मौसम शुरू नहीं हुआ है लेकिन पहाड़ में सैलानियों और गाड़ियों की अनियंत्रित भीड़ अभी से नज़र आने लगी है। गो कि इधर कुछ वर्षों से उत्तराखंड में मौसमीयत के कोई मायने नहीं रह गए हैं। अब यहाँ हरेक मौसम में पर्यटकों का आवागमन हो रहा है। जिस संख्या में यहाँ पर्यटक आ रहे हैं, उस अनुपात में पर्यटन उद्योग से जुड़ी अधिसंरचनात्मक सुविधाओं का विस्तार नहीं हो पा रहा है। अनियोजित, असंयोजित, अनियंत्रित एवं अव्यवस्थित जन पर्यटन के विस्तार ने यहाँ वायु एवं ध्वनि प्रदूषण, जाम सहित अन्य अनेक भौतिक और पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म दिया है। पर्यटन विभाग अनियंत्रित जन पर्यटन से उत्पन्न हो रही अनेक गंभीर समस्याओं से निपटने के लिए स्थायी समाधान खोजने के बजाय फौरी उपायों पर अधिक जोर देता नज़र आ रहा है। पर्यटन कुप्रबंधन के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में अभी से अफरातफरी का माहौल दिखने लगा है।

 

उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य की अर्थ व्यवस्था का मूलाधार समझे जाने वाले पर्यटन उद्योग को संयोजित कर स्थानीय लोगों के लिए लाभप्रद बनाने को लेकर पर्यटन महकमा कतई गंभीर नहीं है। पर्यटन विभाग के इस गैर जिम्मेदार रवैये के कारण नैनीताल जैसे विश्व विख्यात पर्वतीय पर्यटन स्थल समेत पहाड़ के कई नगर -कस्बे आज अनियंत्रित और अनियोजित जन पर्यटन की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। बाबा नीब करौरी महाराज की तपस्थली प्रसिद्ध कैंची धाम इसका जीता- जागता सबूत है। कैंची धाम में भक्तों का तांता और गाड़ियों की बेतहाशा भीड़ है लेकिन यहाँ पर्यटन अधिसंरचनात्मक सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है।

 

उत्तराखंड में पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए तमाम दावे किए जाते रहे हैं और किए जा रहे हैं। लेकिन ब्रिटिश शासन काल में वजूद में आए नैनीताल और मसूरी जैसे ख्याति प्राप्त हिल स्टेशन न्यूनतम अधिसंरचनात्मक सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं।

 

उत्तराखंड को अलग राज्य बने चौबीस साल पूरे हो गए हैं। परंतु यहाँ के भंगुर पर्यावरण और विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप व्यावहारिक पर्यटन नीति नहीं बन पाई है। पर्यटकों की रूपरेखा और पर्यटक सांख्यिकी माप की दिशा में ध्यान नहीं दिया गया है। पर्यटक स्थलों की भार वहन क्षमता का आंकलन करने की आवश्यकता ही नहीं समझी गई है। पर्यटकों से संबंधित कारगर नियम – कानून नहीं हैं। पर्यटक स्थलों में वर्तमान एवं भविष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप अत्यावश्यक अधिसंरचनात्मक सुविधाओं का विकास नहीं हो सका है।परिणामस्वरूप नैनीताल जैसे स्थापित पर्यटक स्थलों में जन पर्यटन ने आपाधापी का माहौल बना दिया है। पहाड़ की सडकें अपनी सामर्थ्य से कहीं अधिक वाहनों का बोझ ढोने को अभिशप्त हैं। जिला प्रशासन के प्रयासों के बावजूद यातायात व्यवस्था लड़खड़ा गई है। नैनीताल जनपद के पहाडी क्षेत्रों की अधिकांश सडकों में गाड़ियों की बेतहाशा भीड़ दिखाई दे रही है। सड़कों पर गाड़ियों की लंबी कतारें और जाम लगना रोजमर्रा की बात हो चली है। गाड़ियों की इस अनियंत्रित भीड़ के चलते शांत एवं स्वास्थ्यवर्द्धक जलवायु वाले पहाड़ में ध्वनि, वायु एवं स्थलीय प्रदूषण बढ़ गया है। गाड़ियों की चिल्ला-पौ ने यहाँ की शांति भंग कर दी है। इस शोरगुल से वन्य जीवों का जीवन भी प्रभावित हो रहा है।

 

नैनीताल में अनियंत्रित एवं असंयोजित यातायात एवं रोजमर्रा के जाम एक गंभीर समस्या बन गया है। इस जाम से स्थानीय निवासी ही नहीं,पर्यटक भी त्रस्त हैं। इस गंभीर समस्या का ठोस निराकरण करने के बजाय नैनीताल नगर पालिका परिषद ने लेक ब्रिज चुंगी और वाहनों के पार्किंग शुल्क में एक साथ कई गुना बढ़ोत्तरी कर दी है। नगर को अनियंत्रित यातायात और जाम की समस्या से निजात दिलाने के ठोस उपाय खोजने के बजाय नगर पालिका परिषद इस अव्यवस्था की ओट में अपना खजाना भरने का सुअवसर तलाश रही है। नगर पालिका परिषद के रुख से लगता है कि नाजुक पर्यावरण वाले नैनीताल में नगर के सामर्थ्य से कई गुना अधिक वाहनों के आवागमन से हो रही अपूरणीय क्षति से गोया उसका कोई वास्ता न हो।

 

सरोवर नगरी नैनीताल समेत उत्तराखंड के अन्य सभी पर्यटक स्थलों का अनियंत्रित, अदूरदर्शी और असंयोजित रूप से व्यावसायिक दोहन हो रहा है। जिससे पर्यावरण संकट बढ़ा है और सामाजिक एवं सांस्कृतिक समस्याएं उत्पन्न हुई हैं। अनियंत्रित जन पर्यटन गतिविधियों से स्थानीय समाज में आक्रोश का वातावरण बन रहा है। मेजबान और मेहमान के बीच तनाव की घटनाएं बढ़ने लगी हैं। ‘वहन क्षमता’ से कहीं अधिक पर्यटकों के आगमन से नैनीताल और इससे लगे कस्बे अत्यधिक भीड़ -भाड़ वाले क्षेत्रों में तबदील हो गए हैं। नैनीताल से लगे भवाली, कैंची धाम भीमताल सहित अन्य नगर-कस्बे भी अति पर्यटन की समस्या से जूझ रहे हैं। इन स्थलों में पचाने की क्षमता खत्म हो गई है।

 

औपनिवेशिक शासक भारत के पहाड़ों की तुलना यूरोपीय पहाड़ों से करते थे। अंग्रेजों को भारत के पहाड़ों की जलवायु अपने पैतृक देश की तरह लगती थी। पहाड़ों की स्वास्थ्यवर्द्धक आबोहवा के मुरीद अंग्रेजों ने भारत में कई हिल स्टेशन बसाए, जिनमें नैनीताल भी सम्मिलित था। नैनीताल को अंग्रेजों ने अभिजात वर्ग के सैरगाह के रूप में बसाया और विकसित किया था। उन्होंने एक निश्चित आबादी के हिसाब से यहाँ अधिसंरचनात्मक सुविधाएं जुटाई थीं।ब्रिटिश शासन काल में नैनीताल उच्च पदस्थ अंग्रेज अधिकारियों, भारतीय राजे-रजवाड़े और नवाबों का प्रिय ग्रीष्मकालीन सैरगाह था।

 

प्रारंभिक काल में नैनीताल आने का साधन घोड़ा,डांडी या पैदल यात्रा थी। यांत्रिक यातायात प्रारंभ होने के बाद यहाँ साल भर में एकाध बार लॉर्ड साहब, तब यहाँ अवस्थित यूनाइटेड प्रोविंसेज के सचिवालय के शीर्ष अधिकारी और नेताओं की सरकारी गाड़ियां ही आती -जाती थीं।आजादी के बाद गाड़ियों का आवागमन बढ़ा।लेकिन निश्चित संख्या में। आजादी के करीब तीन दशक तक कमोबेश यही स्थिति बनी रही। जाहिर है कि उस दौर में पर्यटकों के यहाँ आने-जाने का एकमात्र साधन सार्वजनिक यातायात था। तब पर्यटक सपरिवार यहाँ लंबे अरसे तक प्रवास करते थे। अधिकांश पर्यटक पूरी गर्मी नैनीताल की ठंडी हवा का लुत्फ़ उठाया करते थे। तब पर्यटन उद्योग में टिकाऊपन था। ठहराव था। ऐसा संयोजित एवं व्यवस्थित पर्यटन, पर्यटक स्थल, पर्यटन उद्योग, स्थानीय पर्यावरण एवं पर्यटकों, सभी के लिए लाभकारी था।

 

1980 के दशक में मारुति संस्कृति आने के बाद निजी वाहनों की संख्या बढ़ने लगी।परिवहन के साधन बेहतर हुए। पर्यटकों की रुचियों में भी बदलाव आने लगा। पर्यटन ने फैशन का रूप अख्तियार कर लिया।पर्यटकों को सार्वजनिक यातायात के बजाय निजी वाहनों में आना -जाना सुविधाजनक लगने लगा। अब नैनीताल में पार्किंग की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी। 1983- 84 में नैनीताल के एकमात्र खुले स्थान फ्लैट्स के एक हिस्से को कार पार्किंग में तबदील कर दिया गया।इसके बाद साल- दर- साल पर्यटकों और पर्यटक वाहनों की तादाद बढ़ती चली गई। प्रशासन ने नगर में नए पार्किंग स्थलों को विकसित किया। पर्यटक वाहनों को निश्चित संख्या में ही नगर के भीतर प्रवेश करने देने की व्यवस्था भी बनाई। बावजूद इसके समस्या का समाधान नहीं हो सका।

 

इधर कुछ वर्षों से नैनीताल के सभी पैदल मार्गों में भी गाड़ियां दौड़ने लगीं। टैक्सी बाइकों का प्रचलन भी हो गया है। यहाँ की सडकों और पैदल रास्तों में असंख्य टैक्सी बाइकें एवं निजी दोपहिया वाहन दौड़ने लगे हैं, इन अनियंत्रित दोपहिया वाहनों ने नैनीताल के पैदल मार्गों में आम लोगों का सुरक्षित पैदल चल पाना दूभर कर दिया है। नगर के अधिकांश पैदल और अश्व मार्ग स्थायी- अस्थायी पार्किंग में तबदील हो गए हैं। पैदल यात्रियों के लिए रही- बची सड़कें अवैध पार्किंग ने निगल ली है।

 

नैनीताल में पार्किंग एवं अन्य अधिसंरचनात्मक सुविधाओं को लेकर दशकों से हर साल अलग-अलग स्तर पर विमर्श होता चला आ रहा है। अदूरदर्शी, अव्यावहारिक एवं तदर्थ उपायों क़े चलते ज्यों-ज्यों मर्ज की दवा खोजी जा रही है, त्यों -त्यों मर्ज लाइलाज होता जा रहा है।

 

नैनीताल की विशिष्ट भौगोलिक बनावट के कारण यहाँ पर्यटकों की सुविधाओं में बढ़ोत्तरी की गुंजाइश नहीं के बराबर है। यहाँ आवश्यकता के अनुरूप अधिसंरचनात्मक सामर्थ्य का अभाव है। माँग और आपूर्ति में असंतुलन से व्यवस्थाएं चरमरा गई हैं। संसाधनों पर अत्यधिक दबाव बढ़ गया है। सप्ताहांत पर्यटन की बढ़ती प्रवृत्ति से पर्यटकों के ठहरने की अवधि अत्यंत कम हुई है। सैर- सपाटा पर्यटन बढ़ा है। सैर- सपाटा पर्यटन अधिसंरचनात्मक सुविधाओं में बोझ डालता है लेकिन इससे पर्यटन उद्यम को लाभ कम होता है, हानि अधिक उठानी पड़ती है। गर्मियों के सीजन में भी शनिवार और रविवार की छुट्टियों के अलावा शेष दिनों में पर्यटकों की आवक कम हो रही है। पर्यटकों में संतुष्टि का भाव कमतर होता जा चला जा रहा है। सप्ताहांत के अनियंत्रित जन पर्यटन ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया है।

 

अल्पकालीन और अनियंत्रित जन पर्यटन से आर्थिक लाभ के मुकाबले पर्यावरणीय क्षति अधिक हो रही है।अनियोजित और अनियंत्रित पर्यटन विकास उन्हीं आकर्षणों का नाश का कारण बन रहा है, जो पर्यटकों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करते हैं।

 

पर्यटन उद्योग को लाभकारी बनाने के लिए यहाँ उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों को सामंजस्यपूर्ण और व्यवस्थित ढंग से उपयोग में लाना आवश्यक है।सुनियोजित पर्यटन के लिए व्यावहारिक पर्यटन नीति,पर्यटन मास्टर प्लान, पर्यटक सांख्यिकी माप,पर्यटन रूप-रेखा एवं पर्यटन स्थलों की भार वहन क्षमता का आंकलन और अधिसंरचनात्मक सुविधाओं का विकास बुनियादी शर्त है। पर दुर्भाग्य यह है कि इस दिशा में गंभीरतापूर्वक सोचा नहीं जा रहा है।पर्यटन को टिकाऊ और लाभप्रद बनाने के लिए दीर्घकालिक उपाय खोजने के बजाय समस्याओं का तदर्थ और तात्कालिक समाधान खोजने की प्रवृत्ति हावी होती जा रही है। जबकि सच्चाई यह है कि पर्यटक स्थल की वहन क्षमता को ध्यान में रख कर सुविचारित दीर्घकालीन योजना बनाए बिना अनियंत्रित पर्यटन विकास को रोका नहीं जा सकता है। याद रहे कि पर्यटन स्थल एक बहुमूल्य संपत्ति होती है, नियंत्रित पर्यटन से ही इस संपत्ति को संरक्षित किया जा सकता है।अन्यथा नहीं।

 

 

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