अल्मोड़ा यहां के वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य डाक्टर मदन मोहन पाठक ने सभी भ्रांतियों को दर किनार कर लोगों की जिज्ञासा को शान्त करते हुए हरेला पर्व व पुरूषोत्तम मास पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए बताया कि इस बार हरेला 17 तारीख को ही मनाया जाएगा उन्होंने कहा कि हरेला लोकपर्व एवं क्षेत्रीय पर्व है अतः यह पर्व उसी दिन मनाया जाएगा जिस दिन इसे मनाया जाता है अर्थात 17/7/2023 को क्योंकि हरेला पर्व हर साल श्रावण मास के पहली गते यानि संक्रांति को मनाया जाता है यह भी सत्य है कि उस दिन अमावस्या किंतु संक्रांति और हरेला कभी अलग-अलग नही मनाया जाता यानि श्रावण मास की पहली गते हो ही इसे मनाने का प्रावधान है चूंकि हरेला लोकपर्व भी है अतः इसका अमावस्या से कोई लेना-देना नहीं है वैसे भी हर शुभ अशुभ कार्य में पित्र पूजा पहले होती है तो लोकपर्व में भी सभी अपने पितरों का आवाहन ध्यान करते हैं या यूं कहें कि हर रोज माता पिता गुरु देवताओं का स्मरण होता है तो इसे गलत नहीं कहा जा सकता और हरेला अपने निर्धारित समय के अनुसार एक गते श्रावण मास यानी श्रावण के पहले सोमवार को ही मनाया जाएगा अर्थात लोकपर्व हरेला 17/7/2023 को ही मनाया जाएगा । आइए जानते हैं क्या है अधिमांस अधिक मास के बारे  में जानिए  हमारे हिन्दू पंचाग के अनुसार सौर-वर्ष में 365 दिन, 15 घटी, 31 पल व 30 विपल होते हैं जबकि चंद्र वर्ष में 354 दिन, 22 घटी, 1 पल व 23 विपल होते हैं। सूर्य व चंद्र दोनों वर्षों में 10 दिन, 53 घटी, 30 पल एवं 7 विपल का अंतर प्रत्येक वर्ष में रहता है। इसीलिए प्रत्येक 3 वर्ष में चंद्र-वर्ष में 1 माह जोड़ दिया जाता है। उस वर्ष में 12 के स्थान पर 13 महीने हो जाते हैं। इस बड़े हुए माह को ही अधिक मास कहते हैं। यह सौर वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाता है। अगर सही मायने में कहा जाय जिस माह में दो अमावस्या होती है उसे अधिमास कहते हैं प्रायः एक माह में एक ही अमावस्या होती है पुरुषोत्तम मास  अधिक होने के कारण अधिक मास और अधिक मास में ही भगवान विष्णु की पूजा का महत्व है जिनका नाम पुरुषोत्तम भी होने के कारण इसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है क्योंकि इस मास के स्वामी  श्रीहरि विष्णु जी ही हैं।
 ऐसा माना जाता है कि अधिकमास में किए गए धार्मिक कार्यों का किसी भी अन्य माह में किए गए पूजा-पाठ से 10 गुना अधिक फल मिलता है। यही वजह है कि श्रद्धालु जन अपनी पूरी श्रद्धा और शक्ति के साथ इस मास में भगवान को प्रसन्न कर अपना इहलोक तथा परलोक सुधारने में जुट जाते हैं। अब सोचने वाली बात यह है कि यदि यह माह इतना ही प्रभावशाली और पवित्र है, तो यह हर तीन साल में क्यों आता है? आखिर क्यों और किस कारण से इसे इतना पवित्र माना जाता है? इस एक माह को तीन विशिष्ट नामों से क्यों पुकारा जाता है? इसी तरह के तमाम प्रश्न स्वाभाविक रूप से हर जिज्ञासु के मन में आते हैं। तो आज ऐसे ही कई प्रश्नों के उत्तर और अधिकमास को गहराई से जानते हैं।आमतौर पर अधिकमास में हिंदू श्रद्धालु व्रत- उपवास, पूजा- पाठ, ध्यान, भजन, कीर्तन, मनन को अपनी जीवनचर्या बनाते हैं। पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार इस मास के दौरान यज्ञ- हवन के अलावा श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन विशेष रूप से फलदायी होता है। अधिकमास के अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं, इसीलिए इस पूरे समय में विष्णु मंत्रों का जाप विशेष लाभकारी होता है। ऐसा माना जाता है कि अधिक मास में विष्णु मंत्र का जाप करने वाले साधकों को भगवान विष्णु स्वयं आशीर्वाद देते हैं, उनके पापों का शमन करते हैं और उनकी समस्त इच्छाएं पूरी करते हैं। इसे सुनें
इस मास में सभी प्रकार के मांगलिक विवाहादि कार्यों को वर्जित किया गया है। इस दौरान सभी धार्मिक कृत्य यथा- पुराणों का श्रवण, भगवान की कथा वार्ता, गुणानुवाद, व्रत, स्नान, दान, भगवान शिव का पार्थिव पूजन, ज्योतिर्लिंग का पूजन, जलाभिषेक, रुद्राभिषेक, शिवार्चन, संकीर्तन, पूजन, भजन आदि करने का विधान है अर्थात इस महिने में शिवार्चन पूजा, सत्य नारायण कथा इत्यादि कराने का अक्षय फल प्राप्त होता है।


 
			 
                                



