अल्मोड़ा वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य पंडित डाक्टर मदन मोहन पाठक ने बताया कि कल यानी दिनांक 29/1/2025 को मौनी अमावस्या पड़ रही है। उन्होंने कहा कि अमावस्या के दिन चंद्रमा नहीं दिखाई देता अगर यूं कहें कि जिसका क्षय और उदय नहीं होता उसे अमावस्या कहा गया है। अमावस्या पूरे महीने में एक बार ही आती है। शास्त्रों के अनुसार अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है। अमावस्या सूर्य और चंद्र के मिलन का अद्भुत योग है।अमावस्या : वर्ष के मान से उत्तरायण में और माह के मान से शुक्ल पक्ष में देव आत्माएं सक्रिय रहती हैं। इसके ठीक विपरीत दक्षिणायन और कृष्ण पक्ष में दानवीय आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं। जब दानवी आत्माएं अधिक सक्रिय रहती हैं, तब मनुष्यों में भी दानवी प्रवृत्ति का असर बढ़ जाता है। इसीलिए इन दिनों में अगर मनुष्य धर्म के मार्ग पर चलता है तो उन पर किसी भी प्रकार की काली छाया नहीं पड़ती।
अमावस्या के दिन भूत-प्रेत, पितृ, पिशाच, निशाचर जीव- जंतु और दैत्य ज्यादा सक्रिय और उन्मुक्त रहते हैं। अतः इस दिन के स्वभाव को जानकर विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।ज्योतिष में चंद्रमा को मन का देवता माना गया है। अमावस्या के दिन चंद्रमा दिखाई नहीं देता। ऐसे में जो लोग अति भावुक होते हैं, उन पर इस बात का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। लड़कियां मन से बहुत ही भावुक होती हैं अतः इन पर बुरा प्रभाव पड़ने की संभावना अधिक रहती है। इस दिन चंद्रमा के न दिखाई देने से हमारे शरीर में हलचल अधिक बढ़ जाती है। जो व्यक्ति नकारात्मक सोच वाला होता है उसे नकारात्मक शक्ति अपने प्रभाव में ले लेती है। मानसिक तनाव वाले लोगों पर भी इसका बुरा असर पड़ता है।धर्मग्रंथों के अनुसार चंद्रमा की 16 वीं कला को ‘अमा’ कहा गया है। चंद्रमंडल की ‘अमा’ नाम की महाकला है जिसमें चंद्रमा की 16 कलाओं की शक्ति शामिल है। शास्त्रों में अमा के अनेक नाम आए हैं, जैसे अमावस्या, सूर्य-चंद्र संगम, पंचदशी, अमावसी, इत्यादि।
अमावस्या के दिन चंद्र नहीं दिखाई देता अर्थात जिसका क्षय और उदय नहीं होता है उसे अमावस्या कहा गया है, तब इसे ‘कुहू अमावस्या’ भी कहा जाता है। अमावस्या माह में एक बार ही आती है। शास्त्रों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है। अमावस्या सूर्य और चंद्र के मिलन का काल है। इस दिन दोनों ही एक ही राशि में रहते हैं।
वर्ष भर की मुख्य अमावस्याएं इस प्रकार हैं -भौमवती अमावस्या, मौनी अमावस्या, शनि अमावस्या, हरियाली अमावस्या, दिवाली अमावस्या सोमवती अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या।
यहां पर ध्यान रखने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि इस दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए। इसके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम हो सकते हैं। जानकार लोग तो यह कहते हैं कि चौदस, अमावस्या और प्रतिपदा उक्त 3 दिन पवित्र बने रहने में ही भलाई है। अमावस्या के दिन जो लोग श्रध्दा और भक्ति से शुद्ध जल से स्नान कर देव ऋषि और पितृ तर्पण विधि विधान से करते हैं उनके पितर तृप्त हो कर आशीर्वाद देते हैं,इस दिन तांत्रोक्त पूजा अर्चना भी विशेष फलदाई होती है, साथ ही जप तप और अनुष्ठान करने से मनुष्य के जीवन की सभी बाधाएं दूर होती है।इस दिन तीर्थ स्थान का बहुत बड़ा महत्व है,और तीर्थ श्राद्ध अक्षय फल देने वाला है,तपोनिष्ठ वेदपाठी ब्राह्मण को भोजन अन्न वस्त्र दक्षिणा देने से आपको विशेष फल की प्राप्ति होगी।

