अल्मोड़ा यहां के वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य पंडित डॉक्टर मदन मोहन पाठक ने बताया कि शारदीय नवरात्र का आज सातवां दिन है और आज के दिन मां दुर्गा के सातवें स्वरूप अर्थात मां कालरात्रि की पूजा और अर्चना की जाती है मां के इसी स्वरूप के कारण ही इनका नाम कालरात्रि पड़ा। इनका वर्ण अंधकार की भांति एकदम सांवला है। इनकी पूजा सप्तमी के दिन सुबह नवरात्रि में अन्य दिनों की तरह ही होती है लेकिन रात्रि में विशेष पूजन विधान के साथ मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। माता का यह रूप साधकों को काल के मुख से बचाता है साधक की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती। कालरात्रि उपासक को ज्ञान देती हैं कि अपने क्रोध का उपयोग स्वयं की सफलता के लिए कैसे करना है।बाल बिखरे हुए हैं और इनके गले में दिखाई देने वाली माला बिजली की भांति देदीप्यमान है। इन्हें तमाम आसुरिक शक्तियों का विनाश करने वाला बताया गया है। माता कालरात्रि की पूजा रात्रि के समय भी होती है और उसमें ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:।’ इस मंत्र का जप किया जाता है। यह कालरात्रि देवी का सिद्ध मंत्र है। आज रात इस मंत्र के जप से माता की कृपा पा सकते हैं। पौराणिक कथा है कि शुंभ-निशुंभ और उसकी सेना को देखकर मां दुर्गा को भयंकर क्रोध आ गया था और क्रोध की वजह से मां का वर्ण श्यामल हो गया था। इसी श्यामल स्वरूप से देवी कालरात्रि का प्राकट्य हुआ। मां का यह स्वरूप भक्तों के लिए ममतामयी होने है, इस वजह से माता को शुभंकरी भी कहा गया है।नकारात्मक शक्तियों को मां कालरात्रि देवी दूर करती है । सभी सिद्धियों की भी देवी के नाम से जाने जाने वाली मां को कालरात्रि को सिद्धियों की देवी भी कहा जाता है, आज के दिन तंत्र मंत्र की साधना करने वाले उपासक आज माता की विशेष उपासना करते हैं माता कालरात्रि का नाम मात्र उच्चारण करने से भूत, प्रेत, राक्षस, दानव और सभी पैशाचिक शक्तियां भाग खड़ी होती है इस दिन इनकी पूजा करने वाले साधक का मन सहस्रार चक्र में स्थित होता है। इनकी पूजा में गुड़ के भोग का विशेष महत्व है। एक वेणी (बालों की चोटी) वाली, जपाकुसुम (अड़हुल) के फूल की तरह लाल कर्ण वाली, उपासक की कामनाओं को पूर्ण करने वाली, गर्दभ पर सवारी करने वाली, लंबे होठों वाली, कर्णिका के फूलों की भांति कानों से युक्त, तैल से युक्त शरीर वाली, अपने बाएं पैर में चमकने वाली लौह लता धारण करने वाली, कांटों की तरह आभूषण पहनने वाली, बड़े ध्वज वाली और भयंकर लगने वाली कालरात्रि मां हमारी रक्षा करें।अपने महा विनाशक गुणों से शत्रुओं और दुष्टों का संहार करने वाली सातवीं दुर्गा का नाम कालरात्रि है। विनाशिका होने के कारण इनका नाम कालरात्रि पड़ा। आकृति और सांसरिक स्वरूप में यह कालिका का अवतार यानी काले रंग रूप और अपनी विशाल केश राशि को फैलाकर चार भुजाओं वाली दुर्गा हैं, जो वर्ण और वेश में अर्द्धनारीशवर शिव की तांडव मुद्रा में नजर आती हैं। इनकी आंखों से अग्नि की वर्षा होती है। एक हाथ में शत्रुओं की गर्दन पकड़कर और दूसरे हाथ में खड़क तलवार से युद्ध स्थल में उनका नाश करने वाली कालरात्रि अपने विकट रूप में नजर आती हैं। इनकी सवारी गर्दभ यानी गधा है, जो समस्त जीव जन्तुओं में सबसे ज्यादा परिश्रमी और निर्भय होकर अपनी अधिष्ठात्री देवी कालराात्रि को लेकर इस संसार में विचरण कर रहा है।
कैसे करें मां कालरात्रि देवी की पूजा अर्चना —
शारदीय नवरात्रि के सातवें दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत होकर साफ वस्त्र पहनें और माता का ध्यान करें। माता की पूजा भी अन्य दिनों की तरह होती हैं। मां कालरात्रि की पूजा शुरू करने से पहले उन्हें कुमकुम, लाल पुष्प और रोली लगाएं। इसके बाद माता को नींबुओं की माला और गुड़हल की फूल पहनाएं और फिर उनके आगे तेल का ही दीपक जलाएं। इस दिन मां को लाल फूल अर्पित करने का विधान है। साथ ही इस दिन माता की आरती के बाद सिद्ध कुंजिका स्तोत्र, काली पुराण, काली चालीसा, अर्गला स्तोत्रम, का पाठ करना चाहिए। माता को पूजा में गुड़ या गुड़ से बने व्यंजनों का भोग लगाना चाहिए। माता को सबसे प्रिय मंत्र “जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्ति हारिणि।
जय सार्वगते देवि कालरात्रि नमोस्तुते”॥
इस मंत्र के जाप करें विशेष लाभ रहेगा और आपके जीवन में आ रही सभी समस्याओं का समाधान होगा।

