अल्मोड़ा दिनांक 16/6/2025
📰 धर्म और समाज | विशेष आलेख | पंडित डॉ. मदन मोहन पाठक
केदारनाथ में बढ़ती भीड़ और हेलीकॉप्टर उड़ानों पर प्रश्नचिन्ह: क्या शिव की शांति भंग हो रही है?
✍🏻 वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य पंडित डॉ. मदन मोहन पाठक
(लेखक भारतीय वैदिक ज्योतिष संस्थानम् से संबद्ध हैं और 32 वर्षों से धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा में सक्रिय हैं)
“जहाँ मौन बोलता है, वहाँ शोर पाप है।”
यह पंक्ति केदारनाथ धाम पर पूरी तरह लागू होती है।
हिमालय की गोद में बसा यह पवित्र तीर्थस्थान सिर्फ एक भव्य मंदिर नहीं, भगवान शिव के योग और ध्यान का सजीव केन्द्र है। वे यहां सदियों से ध्यानमग्न मुद्रा में, समस्त सृष्टि के कल्याण के लिए लीन हैं।
आज जब केदारनाथ यात्रा पर प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु पहुंच रहे हैं, तो यह भी देखना होगा कि क्या तीर्थ का वातावरण भी वैसा ही पवित्र और शांत है जैसा शास्त्रों में वर्णित है?
🚁 हेलीकॉप्टर सेवा बनाम तीर्थ की मर्यादा
सरकार द्वारा संचालित हेलीकॉप्टर सेवाएं आधुनिक समय की मांग हो सकती हैं, परंतु इनका अति प्रयोग धार्मिक चेतना के विरुद्ध जा रहा है।
दिनभर आसमान में गूंजती उड़ानों की आवाज, मंदिर के ऊपर से उड़ते हेलीकॉप्टर – क्या यह शिव के ध्यान को भंग नहीं करता?
शिव मौन हैं, योगी हैं, तांडव के भी अधिपति हैं परंतु भीतर से पूरी तरह शांत।
उनके दर्शन की आकांक्षा में यदि श्रद्धालु ही शांति और अनुशासन भूल जाएं, तो यह श्रद्धा नहीं, केवल उत्सववादिता बनकर रह जाती है।
🕉️ शिव की उपासना में भीड़ नहीं, भाव चाहिए
पुराणों और शास्त्रों में वर्णित है कि केदारनाथ शिव की तपोभूमि है। यहां आने वाले हर यात्री को स्वयं तपस्वी बनने का प्रयास करना चाहिए, न कि दर्शक मात्र।
पावन केदारपुरी में यदि सेल्फी, वीडियो, चिल्लाहट और बाजारू मानसिकता प्रवेश करने लगे, तो तीर्थ के ऊर्जा क्षेत्र में विकृति उत्पन्न होती है।
यह वैज्ञानिक सत्य है कि ध्वनि तरंगें और कंपन वातावरण की सूक्ष्म ऊर्जा को प्रभावित करते हैं, और केदारनाथ जैसी उच्च ऊर्जात्मक जगह पर यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
⚖️ संतुलन आवश्यक है: सुविधा भी, श्रद्धा भी
हेलीकॉप्टर सेवा को पूर्णतः रोकना संभव नहीं, न ही यह आवश्यक है।
किन्तु इसका सीमित और नियंत्रित उपयोग, आपातकालीन सेवाओं और विशेष परिस्थितियों तक सीमित किया जाना चाहिए।
👉 स्थानीय प्रशासन को चाहिए कि —
- एक दिन में तय सीमा से अधिक उड़ानें न हों
- मंदिर परिसर के ऊपर उड़ान निषिद्ध हो
- यात्रियों को मौन यात्रा, अनुशासन और पवित्रता की शिक्षा दी जाए
- और सबसे अहम – श्रद्धा को बाज़ार न बनने दिया जाए
🙏 आख़िरी शब्द: तीर्थ की आत्मा को मत मारिए
तीर्थ यात्रा का उद्देश्य केवल मंदिर जाकर दर्शन करना नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा है।
यदि तीर्थ ही अपनी मौलिकता खो देगा, तो श्रद्धा भी खो जाएगी।
महादेव को शोर नहीं चाहिए।
उन्हें आपका समर्पण, मौन, संयम और एकांत चाहिए।
केदारनाथ की वादियों में हेली शोर नहीं, हर हर महादेव का गूंजता मन चाहिए।
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लेखक:
पंडित डॉ. मदन मोहन पाठक
वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य, भारतीय वैदिक ज्योतिष संस्थानम् एवं कर्मकांड विशारद
(साहित्यकार, आध्यात्मिक मार्गदर्शक, 32 वर्षों का अनुभव)

