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May 17, 2025

अद्भुत और अनोखा: भोपाल का राष्ट्रीय मानव संग्रहालय

News Deskby News Desk
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भय बिन होय न प्रीति: भारत-पाकिस्तान के जटिल संबंधों को समझने की कुंजी 
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18 मई – विश्व संग्रहालय दिवस

अद्भुत और अनोखा: भोपाल का राष्ट्रीय मानव संग्रहालय

(लेखक: विवेक रंजन श्रीवास्तव, विभूति फीचर्स)

 

हर वर्ष 18 मई को विश्व संग्रहालय दिवस मनाया जाता है, ताकि संग्रहालयों के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और शैक्षणिक महत्व को रेखांकित किया जा सके। भारत, जिसकी सांस्कृतिक धरोहरें विश्व में अद्वितीय मानी जाती हैं, उसकी पहचान खजुराहो के मंदिरों की मूर्तिकला, साँची के बौद्ध स्तूप और भीमबेटका की प्राचीन गुफाओं जैसे स्मारकों से बनती है। ये सभी धरोहरें न केवल भारत की शान हैं, बल्कि यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में मान्यता प्राप्त हैं।

 

हमारे लिए यह गर्व की बात है कि भारत की न केवल स्थापत्य और मूर्तिकला की धरोहरें, बल्कि हमारे प्राचीन ग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता और भरतमुनि का नाट्यशास्त्र भी यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किए जा चुके हैं।

 

संग्रहालयों का महत्व

 

संग्रहालय वे संस्थान हैं जो न केवल हमारी पुरातात्विक और सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजते हैं, बल्कि उन्हें आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित भी करते हैं। इन संग्रहालयों में वस्तुएं केवल प्रदर्शन के लिए ही नहीं होतीं, बल्कि वे हमारे अतीत की जीवंत कहानियाँ कहती हैं।

 

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय – एक जीवंत अनुभव

 

भोपाल स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय विश्व का एकमात्र ऐसा संग्रहालय है जो मानव सभ्यता के विकास को न केवल प्रदर्शित करता है, बल्कि अनुभव कराने का अवसर भी देता है। यदि आप नागालैंड की संस्कृति को बिना वहाँ गए महसूस करना चाहते हैं, तो संग्रहालय में बने नागालैंड परिसर में जाकर आप स्वयं को उस परिवेश में पा सकते हैं। यहाँ की साज-सज्जा मूल नागा कारीगरों द्वारा की गई है, जो इस स्थान को अत्यंत जीवंत बनाती है।

 

संग्रहालय की स्थापना

 

इस संग्रहालय की परिकल्पना वर्ष 1970 में प्रसिद्ध मानवविज्ञानी डॉ. सचिन रॉय ने की थी। उन्होंने एक ऐसे संग्रहालय की बात कही थी जो मानव की उत्पत्ति से लेकर विकास तक की कहानी को संपूर्णता में प्रस्तुत कर सके। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने इस विचार को साकार रूप दिया। 1977 में दिल्ली के बहावलपुर हाउस में इसकी स्थापना हुई और दो वर्ष बाद 1979 में इसे भोपाल स्थानांतरित कर दिया गया।

 

भोपाल के श्यामला हिल्स में 200 एकड़ में फैले इस संग्रहालय को अब संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत स्वायत्तशासी संस्थान का दर्जा प्राप्त है। दक्षिण भारत में इसके कार्यों को सशक्त करने हेतु मैसूर में इसका दक्षिण क्षेत्रीय केंद्र भी कार्यरत है।

 

एक “लघु भारत” की झलक

 

यह संग्रहालय अपने विशाल मुक्ताकाश प्रदर्शनों के लिए प्रसिद्ध है। लगभग 40 एकड़ में फैले जनजातीय आवासों की प्रदर्शनी में देशभर की जनजातियों – जैसे भील, संथाल, टोडा, वारली, रजवार, बोडो, नागा, आदि – के पारंपरिक आवास प्रदर्शित किए गए हैं। विशेष बात यह है कि ये घर उन्हीं जनजातियों द्वारा अपनी पारंपरिक सामग्रियों से बनाए गए हैं।

 

‘हिमालयन ग्राम’, ‘मरूग्राम’ और ‘तटीय गांव’ जैसी प्रदर्शनी में क्षेत्रीय भिन्नताओं के अनुसार हिमाचल, राजस्थान, केरल और तमिलनाडु के परंपरागत आवासों को दर्शाया गया है।

 

पारंपरिक तकनीक और लोक ज्ञान

 

यहाँ प्रदर्शित पारंपरिक तकनीकों में मणिपुर की नमक निर्माण विधि, उत्तराखंड की जल चक्की, छत्तीसगढ़ की गन्ना पेराई, और तेल निकालने की पारंपरिक तकनीकें प्रमुख हैं। ये तकनीकें न केवल जनजातीय जीवन के विज्ञान को दर्शाती हैं, बल्कि सतत विकास की मिसाल भी हैं।

 

अनूठी वीथिकाएं

 

मिथक वीथिका: देशभर के जनजातीय मिथकों पर आधारित प्रदर्शनी

 

नदी घाटी सभ्यता वीथिका: मानव सभ्यता और नदियों के संबंध की प्रस्तुति

 

चित्रित शैलाश्रय: संग्रहालय में मौजूद 32 गुफाओं में भीमबेटका जैसी गुफाचित्रकला का संग्रह

 

वन एवं मेडिसिनल ट्रेल: देश भर से लाए गए औषधीय पौधों और वनों का संरक्षण

 

 

अंतरंग संग्रहालय भवन

 

लगभग 10,000 वर्गमीटर में फैले इस भवन में मानव उद्भव, विश्वास परंपराएं, वस्त्र, मुखौटे, भोजन परंपराएं और जनजातीय संगीत जैसे विषयों पर स्थायी प्रदर्शनियाँ स्थापित हैं। यहाँ 35,000 से अधिक प्रादर्श और 7,000 घंटे की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग संग्रहित हैं।

 

दर्शकों के लिए सुविधाएं

 

यहाँ आने वाले दर्शकों को निःशुल्क गाइड सुविधा, व्हीलचेयर, ब्रेल लिपि में जानकारी, वातानुकूलित ऑडिटोरियम, फोटोग्राफिक प्रदर्शनी, हेरिटेज कॉर्नर, बच्चों के लिए खेल क्षेत्र, कैंटीन, तथा शोधार्थियों के लिए विशाल पुस्तकालय उपलब्ध है।

 

बालरंग: बच्चों का उत्सव

 

मध्यप्रदेश सरकार के सहयोग से संग्रहालय में राष्ट्रीय बालरंग कार्यक्रम आयोजित होता है जिसमें विभिन्न राज्यों से आए बच्चे पारंपरिक नृत्य और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां देते हैं। यह आयोजन बच्चों के लिए, बच्चों द्वारा और बच्चों के माध्यम से किया जाता है।

 

 

—

 

निष्कर्षतः, यह संग्रहालय केवल देखने के लिए नहीं है, बल्कि महसूस करने के लिए है। यह भारत की जीवंत विविधता, लोकज्ञान, परंपराओं और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। विद्यार्थियों, शोधकर्ताओं और आम दर्शकों के लिए यह संग्रहालय निःसंदेह शिक्षा, ज्ञान, शोध और मनोरंजन का एक समृद्ध केंद्र है।

 

(विभूति फीचर्स)

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